मकड़ी वाली घटना के बावजूद रात अच्छी कट गयी थी। 5:30 बजे राजीव जी ने जगाया। राजीव जी चलने को तैयार थे। मैं फ्रेश हो आया। आज सुबह 5 बजे यहां से चलने का विचार था लेकिन दुकान वाले ने रात को ही मना कर दिया था कि सुबह अँधेरे में मत जाना। आगे पुल के पास कई बार
जंगली जानवर सुबह तक घूमते दिखे हैं। उसने बताया सुबह 5:30 बजे घोड़े वाले निकलते हैं यहीं गांव से, उनके बाद ही जाना। घोड़ों की आवाज से जंगली जानवर वापस घने जंगल में लौट जाते हैं। हम 6 बजे गोंडार से चले। रूम और खाने के पैसे रात को ही चुका दिए थे। गोंडार से आगे करीब एक घंटे बाद राजीव जी के मोबाइल की रेंज आयी। मोबाइल चेक किया तो मेरे लिए घर से मैसेज आया हुआ था और घर पर सब मेरी चिंता कर रहे थे। घर फ़ोन लगाया तो पत्नी ने रोते रोते फ़ोन उठाया। पूछने पर पता चला कि उन्होंने ट्रेक शुरू होने वाले दिन ही शाम को मेरे नंबर पर फ़ोन किया था जो किसी और आदमी ने फ़ोन उठाया था। उसकी भाषा भी घर पर किसी को कुछ खास समझ नहीं आयी। उसने टूटी फूटी हिंदी में बताया की उसे फ़ोन गिरा हुआ मिला लोहे पे। घर वालों को लगा मेरे साथ कुछ दुर्घटना हो गयी है और मैं कहीं गिर गया इसीलिए मेरा फ़ोन किसी को गिरा हुआ मिला है। वहां फ़ोन के सिग्नल भी कभी कभी ही आते थे तो आवाज साफ़ भी नहीं आती थी। उन्होंने बार बार फ़ोन कर के पूरी बात समझी, पर अभी भी मुझ से बात नहीं हो पा रही थी क्योंकि राजीव जी के फ़ोन में सिग्नल नहीं आ रहे थे। उन्होंने
व्हाट्सप पर मैसेज किया राजीव जी के फ़ोन पर इस उम्मीद पर की जब भी मोबाइल नेटवर्क में आएगा ये मैसेज उन तक पहुंच जायेगा। सुबह जब रांसी के पास पहुंचे तो राजीव जी ने मोबाइल का फ्लाइट मोड ऑफ किया। धड़ा धड़ मैसेज आते चले गए। उन्होंने मैसेज देख कर बताया कि कुलवंत तुम्हारे घर से मैसेज आया हुआ है तुमसे बात करनी है जरुरी। राजीव जी के फ़ोन से घर फ़ोन लगाया तो मुझे सारी बात समझ में आयी और मेरे खोये मोबाइल की खबर मिली। मुझे पता चला कि फोन किसी घोड़े (खच्चर/टट्टू) वाले को मिला है और वो फ़ोन वापस करना चाहता है। दिल गार्डन गार्डन हो गया खुशखबरी सुन के। हाथ भी खाली खाली लग रहे थे बिना मोबाइल के। दिल को तसल्ली हुई कि चलो फ़ोन तो मिल गया नहीं तो फालतू का खर्चा करना पड़ता नए फ़ोन के लिए। आजकल फ़ोन बिना सब काम अटक जाता है। बड़े काम की चीज़ बनाई है। एक पूरी की पूरी दुनिया समेटे रहता अपने आप में मोबाइल। कुछ देर बात कर के राजीव जी को भी खुशखबरी सुनाई। उन्हें तो यकीन ही नहीं हुआ के आजकल के लालच भरे ज़माने में कोई किसी का मोबाइल लौटा सकता है। मैंने घोड़े वाले को फ़ोन मिलाया तो आवाज कुछ साफ़ नहीं सुनाई दी।
नेटवर्क सिग्नल बहुत कमजोर थे और आवाज रुक रुक कर आ रही थी। मैं ठीक से समझ नहीं पाया कि वो लोग अभी ट्रैक पे कहां हैं । मैंने उसे बताया के हम आधे घंटे में रांसी पहुंच जायेंगे। उसने भी एक घंटे बाद रांसी की दुकान पर मिलने का कहा। रांसी पहुंच कर एक्स्ट्रा सामान कपड़े जो रांसी की दुकान पर छोड़ कर गए थे वापस बैगों में भरे और गीले कपड़े, तौलिया वगैरा वहीं पत्थरों पे सूखने को डाल दिया। एक चाय भी नमकीन के साथ पी। आज अच्छी धूप खिली थी जिसने चाय के स्वाद को और बढ़ा दिया था। कुछ देर वहीं गप्पें लड़ाते हुए घोड़े वाले का इंतजार करते रहे। ठीक एक घंटे बाद फिर से घोड़े वाले को फ़ोन मिलाया तो हमें उसकी भाषा और बात समझ नहीं आयी। रांसी की दुकान वाले से उस घोड़े वाले की बात करवाई फिर सारी बात साफ़ हुई। असल में हुआ ये था कि जब हम रांसी वाली दुकान पर पहुंचे थे तो कुछ घोड़े वाले घोड़ों पे सामान लाद रहे थे और सारा सामान लदने पर वो मदमहेश्वर के लिए निकल गए । उन्हीं में से एक के पास मेरा फ़ोन था। धत्त तेरे की। ऐसे ही एक घंटा ख़राब हो गया। फ़ोन यहीं था और हम फिर भी उसके आने की राह देख रहे थे के फ़ोन आये तो चलें यहां से। घोड़े वालों को निकले आधे घंटे से ज्यादा का समय हो गया था और हम पैदल उनको पकड़ नहीं सकते थे क्योंकि घोड़े काफी तेज चलते हैं और सामान लदा होने से वो कहीं ज्यादा रुक कर हमारा इंतजार भी नहीं कर सकते थे। उस घोड़े वाले ने वहीं आगे रास्ते में पगडण्डी की मरम्मत कर रहे
ठेकेदार के आदमियों को फ़ोन दे कर उसने हमें फ़ोन पे बताया कि उनसे आकर फ़ोन ले जाना, हम तो अब आगे जा रहे हैं ।
आज अब फिर से ट्रैक शुरू किया और जहां पगडण्डी ठीक करने का काम चल रहा था वहां पहुंचे। आठ दस लोग पत्थरों को बिछा कर लेवल कर रहे थे। उन्हें जाकर सारी बात बताई और उन लोगों से फ़ोन ले के आये। मैं बहुत खुश था फोन जो मिल गया था। मुझे कोई उम्मीद नहीं थी के फ़ोन वापस मिल जायेगा मतलब इतनी नाउम्मीदी थी के एक बार घंटी कर के भी चेक नहीं किया कि फ़ोन चल रहा है या उठाने वाले ने स्विच ऑफ कर रखा है। भाग्य में लिखा कोई छीन नहीं सकता आज ये बात फिर से सिद्ध हो गयी। उन लोगों को एक बड़ा वाला थैंकयू और चाय पानी के पैसे दे वापस रांसी आये। घोड़े वाले के लिए भी 500 रुपए रख दिए चाय की होटल पे और फोन करके कहा कि भाई साब बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आपके लिए 500 रुपए दुकान पे रख के जा रहे हैं आप आते समय ले लेना। मदमहेश्वर ट्रैक के साथ जुड़ने वाली बुरी याद अब ख़ुशी में बदल चुकी थी। जय हो बाबा मदमहेश्वर जी की। दिल से भोले बाबा को याद किया और उनकी कृपा के लिए उनका धन्यवाद किया। बाइक स्टार्ट कर निकल ही रहे थे के अचानक से याद आया कि तौलिये यहीं भूल रहे हैं। याद ना आता तो तौलिये के लिए वापस कौन आता और वो यहीं किसी झाड़ी पे टंगे टंगे खत्म हो जाते। जल्दी से तौलियों को समेट बैग में रखा और निकल पड़े एक नई मंजिल के लिए । चाय अब उखीमठ पहुंच कर ही पी। आज अब आगे की मंजिल थी कार्तिक स्वामी मंदिर। यहां से कार्तिक स्वामी मंदिर के लिए चल पड़े।
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Madmaheshwar Trek, वो घोड़े वाला इन लोगों को फ़ोन देकर आगे चला गया था। इन्हीं से फिर हम जा कर फ़ोन ले आये। |
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Madmaheshwar Trek, राजीव जी मोबाइल पर आगे का रास्ता देखते हुए |
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Madmaheshwar Trek, धारी देवी माता मंदिर |
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Madmaheshwar Trek, ऐसे होते हैं पहाड़ के रास्ते |
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Madmaheshwar Trek, कहीं धूप कहीं छाया |
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Madmaheshwar Trek, रास्ते का साइन बोर्ड |
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