Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-1
Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक
पहला दिन 18 सितम्बर 2019 (दिल्ली से श्रीनगर)
मैं घुमक्क्ड़ी में नया नया ही आया था परन्तु हमेशा दिमाग में बाइक पे घूमना ही रहता था। अब ट्रैकिंग का भी थोड़ा थोड़ा शौक जगने लग गया था। इससे पहले 2 बार अमृतसर, 2 बार माता वैष्णोदेवी, और एक बार शिमला ही घूम पाया था जिसमे वैष्णोंदेवी हम 7 दोस्त थे और शिमला मेरे साथ मेरा दोस्त संतोष पांडेय गया था बाकी में परिवार के साथ ही दर्शन किये थे।ऎसे बनी Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक पर जाने की योजना:
काफी समय से facebook पर कई ट्रेवल ग्रुप में जुड़ा और अच्छी अच्छी नयी जगहों की जानकारी देखता समझता रहता था। अगस्त 2019 में धौलपुर में Travel Talk Family (यात्रा चर्चा परिवार) का घुमक्क्ड़ी सम्मलेन आयोजित हुआ मास्टर सत्यपाल चाहर जी के घर। गज़ब घुमक्कड़ हैं मास्टर जी। धौलपुर राजस्थान में ही है तो हिम्मत कर के जाने का विचार बना ही लिया। करीब 40+ जनों की व्यवस्था उनके निवास पर ही थी। वहां मैं सिर्फ संदीप पंवार जी को ही पहचानता था (हालाँकि कभी मिला नहीं था) बाकि सब मेरे लिए अजनबी थे। वहां धौलपुर में 3 दिन जम के ताबड़तोड़ घुमक्क्ड़ी की गयी और लगभग सभी लोगों को अब जानने लगा था। सभी लोग हंसी मजाक वाले थे मुझे कोई परेशानी नहीं आयी। सब के सब धुरंधर घुमक्कड़, सबसे नया मैं ही था वहां। वहीं राजीव जी (दिल्ली) से मिला जिनके साथ मैंने मेरा पहला पहाड़ों का ट्रैक मदमहेश्वर पूरा हुआ।अब आते हैं ट्रैक पर। 16 अक्टूबर देर शाम को फाइनल हुआ कि 18 अक्टूबर, शुक्रवार को सुबह दिल्ली से बाइक पर जाना है । अगले दिन सुबह 17 को बीकानेर से दिल्ली सराय रोहिल्ला सुपरफास्ट का टिकट टिकट विंडो से बुक करवा के आया (ऑनलाइन अभी सीखा नहीं था क्योंकि कभी जरुरत ही नहीं पड़ी थी)। रात को 10:30 की ट्रेन थी, दोनों बैग लेकर उसी में लोड हो गया । रात अच्छी कट गयी ट्रेन में। सुबह 6:08 मिनट पर ट्रेन सराय रोहिल्ला पहुंच गयी। अब राजीव जी को फ़ोन लगा के पूछा कि कहां आना है। उन्होंने दिलशाद गार्डन तक मेट्रो से आने का कहा । मेट्रो में 2-3 बार पहले भी जब दिल्ली आया था तो सफर कर चुका था। बहुत साफ़ सुथरी बढ़िया गाडी है, दिल्ली के ट्रैफिक में इससे बेहतर इससे तेज कुछ नहीं। जनता भी पूरी न्यूयॉर्क वाली फीलिंग लेती इसमें सफर करते हुए खासकर कॉलेज के छोरे छोरियां। दिलशाद गार्डन आ गया। मन तो किया थोड़ी देर और चलते हैं इसी में ही पर उतरना जरुरी था। AC की ठंडी हवा खा के ठंडी आह भर कर उतर लिए अपने दोनों बैगों के साथ। एक में कपडे थे एक में हेलमेट था। राजीव जी से फिर फ़ोन पर बात हुई बोले "बस पहुंच ही रहा हूँ "। मैं मेट्रो से बाहर आके सड़क किनारे थोड़ा हाथ मुंह धो लिया और एक चाय गटक ली। थोड़ी ही देर में राजीव जी पल्सर 150 पे प्रकट हुए। बैग से हेलमेट निकलने पर बैग हल्का सा हो गया, पर दूसरा थोड़ा फूला हुआ था जैकेट, थर्मल और एक गर्म लोई की वजह से जो बाइक पे राजीव जी के बैग के साथ बांधना मुश्किल भी था और अनसेफ भी। हलके वाला मेने पिट्ठू लगा लिया और दूसरा वाला राजीव जी ने फ्रंट में लगा लिया बाइक के टैंक पर और पास ही के पेट्रोल पंप पर टैंक फुल करवा लिया। श्री मदमहेश्वर, Madmaheshwar Trek के लिए हमारा सफर शुरू हुआ।
अब तक सुबह के 8 बजे चुके थे। बड़े शहर कभी सोते नहीं तो सुबह सुबह भी दिल्ली में ट्रैफिक मिला जो राजीव जी के अनुसार कम ही था पर मेरे जैसे छोटे शहरवासी के लिए बहुत था। बाइक राजीव जी ही चला रहे थे। मुरादनगर से नहर वाला रास्ता पकड़ा क्योकि वहां ट्रैफिक कम होता है। 10 बजे के करीब नाश्ते के लिए चोटीवाला रेस्टोरेंट पे गाड़ी रोकी। इस नहर वाली सड़क पर ये इकलौता ही रेस्टोरेंट है जहां खाने की अच्छी व्यवस्था है। बाकी जगह हल्का फुल्का नाश्ता टाइप मिल सकता पर खाना नहीं। भूख भी अब तक चमक आयी थी। एक एक परांठा दही अचार से खाया। परांठा बढ़िया बना था और काफी मोटा और बड़ा भी था तंदूरी पर कीमत थी 90 रुपए एक परांठे के जिसने स्वाद सा बिगाड़ दिया। राजीव जी कहा अब यहां से आगे कई दिन सादा खाना ही मिलेगा इसलिए अभी मजे लूट लो परांठे के। परांठे निपटाने के बाद बाइक को खतौली की तरफ और दौड़ा दी । 30-40 किलोमीटर चलने के बाद ड्राइवर चेंज हुआ। अब बाइक मेरे हाथों में थी। बाइक के क्लच में कुछ गड़बड़ थी और बाइक स्पीड कम पकड़ रही थी पर फिर भी 60+ ही चल रही थी। मीरापुर या बिजनौर आया था शायद। शहर में एक मोड़ पर सामने से ट्रक ओवरटेक करता हुआ सारी सड़क रोके आ रहा था। बाइक तो धीरे ही थी और ट्रक देख के और धीरे कर ली थी और सड़क से नीचे भी उतार ली थी लेकिन वो वापस सड़क पर चढ़ नहीं पायी और बैलेंस बिगड़ गया। छोटा वाला धड़ाम हो गया। बाइक एकदम स्लो होने की वजह से कोई चोट नहीं आयी। राजीव जी को पहले ही अंदाजा था कि नए को दिल्ली के ट्रैफिक में और पहाड़ों में बाइक चलाने देना कोई समझदारी नहीं है पर प्लेन में भी मेरे बाइक को रपटाने ने मेरी पूरी ड्राइविंग की मिट्टी पलीत कर दी । खैर, उन्होंने मुझे डांटा नहीं और बाइक अभी भी मैं ही चला रहा था।
Madmaheshwar Trek, हरे भरे रास्ते |
कोटद्वार से पहाड़ दिखने शुरू हुए और चढ़ाई भी शुरू हो गयी । दोपहर 2 बजे के करीब एक छोटे से पहाड़ी ढाबे पे खाना खाया। जैसा राजीव जी ने पहले ही बता दिया था कि अब आगे के सफर में खाना सादा ही मिलेगा सेम वैसा ही एकदम सादा खाना मिला पर स्वाद अच्छा था। 50 रुपए डाइट। ढाबे पर ही एक दो फोटो खींचे। फेसबुक पर चेप भी दिए तुरंत ही। खाना खा के कुछ देर वहीं खटिया पे सुस्ताये और एक एक कटिंग चाय पी के फिर चल दिए। आज की मंजिल श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) थी जो अभी काफी दूर थी। अब राजीव जी ने बाइक पकड़ ली और सतपुली, पाटीसैण, परसुंडाखाल होते हुए हम पौड़ी पहुंचे। शाम हो चुकी थी। पहाड़ों में वैसे भी दोपहर से शाम होते देर नहीं लगती। वहां एक एक कप चाय पी कर फिर चल पड़े श्रीनगर की तरफ। बाइक के पीछे बैठे मेरे दिमाग में तो बस Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक ही घूम रहा था और हरे भरे पहाड़ों को देख के मन बहुत प्रसन्न था। हो भी क्यों ना पहली बार ही तो इतने पास से इतने पहाड़ देख रहा था।
Madmaheshwar Trek, बलखाती सड़कों पे चीड़ का साम्राज्य |
बैग रूम में रखकर खाने के लिए निकलने लगे तो राजीव जी ने याद किया कि पेट्रोल अभी भरवा लेते हैं सुबह जल्दी निकलना है और सुबह पेट्रोल पंप जल्दी खुलेगा नहीं। वापस बाइक निकली और धर्मशाला के बिलकुल पास वाले सरकारी पंप पे गए। शाम के 8 बजे से भी लेट हो गयी और सरकारी पंप तो शायद शाम 7 बजे ही बंद हो गया था।
Madmaheshwar Trek, अलकनंदा नदी के किनारे के खेत |
आगे करीब 3 किलोमीटर पर एक और पेट्रोल पंप था जो थोड़ा लेट तक खुला रहता था तो वहीं जाना पड़ा। टैंक फिर फुल करवाया और आते समय ही खाना भी खा आये, वही सादा खाना लेकिन स्वाद, 50 रुपए प्रति व्यक्ति। धर्मशाला में रूम के 300 रुपए लगे। रूम काफी बड़ा था और साफ ही था। लेट बाथ अटैच। धर्मशाला अच्छी और काफी बड़ी है। रूम में आके मुंह हाथ पैर ही धोये, नहाया नहीं। इतना थक कर ठंडे पानी से नहा कर बीमार नहीं होना था। नहाने के लिए सुबह ही सबसे अच्छा समय होता है। देर रात को ठंडे पानी से जितना कम पंगा लो उतना ही सेहत के लिए अच्छा रहता है। थोड़ा मोबाइल चार्ज कर लिया। मच्छरों से बचने के लिए पंखा चला लिया और कंबल की ओढ लिया। कल सुबह 6 बजे रांसी गांव (Ransi Village) से Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक के लिए निकलना था। घर पर फ़ोन से बात की और फिर थोड़ा मोबाइल चलाया। थकान की वजह से जल्दी ही नींद आ गयी।
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