Friday, November 29, 2019

Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-2

Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-2 

19 सितम्बर 2019 (दूसरा दिन)

Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-2

श्रीनगर से रांसी गांव और मैखंबा, Ransi Village 

पूरे ट्रेक में सुबह पहले उठने का काम राजीव जी ने ही किया तब तक मैं 10-15 मिनट और नींद खींच लेता था जो बड़ी प्यारी नींद होती है। राजीव जी 5 बजे से पहले ही उठ गए थे और मैं 5:30 बजे उठा । फ्रेश हुआ। आज नहाना जरुरी था क्योंकि अब आगे ठंड ज्यादा ही मिलनी थी और पता नहीं आगे नहाने का समय/व्यवस्था हो ना हो। नहा धो कर ठीक 6 बजे श्रीनगर से रांसी गांव, Ransi Village के लिए रवाना हो गए। सड़क अब चौड़ी और साफ़ थी अलकनंदा नदी के किनारे किनारे। बाइक अब ज्यादा रेस मांग रही थी और चल कम रही थी।  एक जगह रुक के बाइक के टायर को चेक किया तो हवा कम लगी। मौके पे थोड़ा ही आगे एक पंक्चर की दुकान मिल गयी जहां हवा चैक करवाई। कम ही थी।  टायर में हवा सही करवाई। टायर में हवा पूरी होते ही अब बाइक अब अच्छे से और काफी आराम से चल रही थी। क्लच प्लेट में कुछ गड़बड़ के बावजूद भी बाइक अब कोई दिक्कत महसूस नहीं कर रही थी और सही दौड़ रही थी । रुद्रप्रयाग पार कर चाय के लिए रुके। चाय की दुकान पर परांठे का मसाला भी तैयार था तो परांठे का भी बोल दिया।  10-15 मिनट में गर्मागर्म परांठे प्लेट में आ गए।  परांठे बहुत बढ़िया और करारे बने थे तो 2-2 आराम से खा लिए साथ ही चाय भी पी ली। मन तृप्त हो गया सुबह सुबह बढ़िया परांठे का नाश्ता कर के। 4 परांठे, 2 चाय, एक आमलेट 170 रूपये के बने।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, खूबसूरत रास्ते

अब आगे आने वाला शहर अगस्तमुनि था।  और भी छोटे बड़े गाँव आते गए और पीछे छूटते गए और चढ़ाई और खड़ी और तेज होती जा रही गई । पहले कुंड, फिर कुंड से उखीमठ, बरुआ, उनियाना होते हुए रांसी गाँव Ransi Village आया।  कुछ साल पहले तक यहीं से श्री मदमहेश्वर, Madmaheshwar Trek ट्रेक शुरू होता था पर अब सड़क 1.5 किलोमीटर और आगे तक बन चुकी है जहां एक चाय मैगी की पक्की दुकान है गाड़ियां वहां तक जाती हैं और अब सब लोग वहीं से ट्रेक शुरू करते हैं । दुकान 2 कमरों की है।  एक कमरे में चाय मैगी चलती है और साथ वाले कमरे में आगे के गावों के लोगों/दुकानों के राशन पानी की बोरियां रखी रहती हैं जिन्हें खच्चरों पे लाद के आगे तक पहुंचाया जाता है।  बाइक को सड़क के एकदम किनारे लगा दुकान पे लंच किया और जरुरी कपड़े, सामान एक एक बैग में लेकर बाकी सामान और हेलमेट वगैरा वहीं दुकान के साथ वाले कमरे में ही रख दिया। घर पर फ़ोन कर के बता दिया कि अब Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक शुरू कर रहे हैं और अब आगे शायद दो दिन तक मोबाइल की रेंज नहीं आएगी इसलिए परेशान ना हों। ट्रेक से वापस लौटकर ही बात हो पायेगी।
         
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, रांसी गांव से आगे की दुकान। यहां तक सड़क बन गयी है। 
 समय साढ़े 12 का हो गया था। आज बादल नहीं थे, मौसम साफ़ और बढ़िया धूप खिली थी लेकिन सामने ही ऊँचे ऊँचे पहाड़ दिख रहे थे जिनकी चोटियां बादलों में घिरी थी। यात्रा शुरू हुई Madmaheshwar Trek की। 
हमारे साथ ही श्रीनगर के 5-6 लड़के भी ट्रेक के लिए चले।  ट्रेक के शुरू में थोड़ी ढलान से ट्रेक शुरू हुआ। ट्रेक का रास्ता पहाड़ के पक्के पत्थरों से बना है और काफी दूर तक तो सीमेंट पिला कर अच्छे से लेवल किया हुआ है। खूब हरियाली, ठंडी ठंडी हवा, ऊँचे ऊँचे पेड़ और किनारे बड़े बड़े पत्थरों के साथ साथ पगडण्डी चलती है। दूसरी तरफ घाटी में पहाड़ से बह कर आता पानी था जो नदी का आकार ले रहा था। इस ट्रेक पर रास्ता नहीं भटक सकते क्योंकि रास्ता सिर्फ एक ही है और वो भी पक्का है। रास्ते की मरम्मत अब भी एक दो जगह चल रही थी। थोड़ी थोड़ी दूरी पर ही गाँव आते रहते हैं तो मन भी लगा रहता है और हिम्मत भी बनी रहती है।  मेरा ये पहाड़ का पहला ही अनुभव था।  मैं बहुत ही खुश था और अपने को किस्मतवाला मान रहा था कि मैं ये Madmaheshwar Trek कर रहा हूं। थोड़ी देर चलने के बाद एक झरना आया और फिर एक पुल भी आया।  बहुत सुंदर झरना था।  कई फोटो लिए वहां।   
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, ठंडे पानी का झरना
पुल के साथ भी फोटो खींचे। पानी बोतल में भर कर ही चले थे रांसी से तो बोतल फुल थी। थोड़ा पी जरूर लिया झरने का ठंडा ठंडा पानी। एक कॉफ़ी वाली टॉफी खायी जिसमें मशीन की गलती से एक की जगह दो टॉफी पैक हो गयी थी।  किसी चीज़ की खरीद पर साथ में कुछ एक्स्ट्रा फ्री में मिल जाये तो भला किसे अच्छा नहीं लगेगा।  राजीव जी टॉफी खाते नहीं तो दोनों मैंने ही खायी। और आगे चलते गए तो मुझे एक जगह रंगीन चश्मा गिरा हुआ मिला। किसी का गिर गया होगा शायद। देते किसे वहां तो कोई था भी नहीं।  सस्ता सा थोड़ा पुराना ही था। चश्मा लगा एक दो सेल्फी खींची।  मैं सोचूं ये तो गुडलक ही गुडलक हो रहा आज तो। अपुन खुस।
         
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, हरियाली और रास्ता
  आगे चलते गए।  5-6 किलोमीटर बाद पहला गांव आया गोंडार। गोंडार में चाय पी और थोड़ी देर कमर सीधी की। राजीव जी चाय के साथ साथ Madmaheshwar Trek से आगे नंदीकुंड-घीयाविनायक और कल्पेश्वर ट्रेक के लिए दुकान वाले से जानकारी जुटा रहे थे जो उन्हें इस साल बर्फ़बारी की वजह से रद्द करना पड़ा था और अगले साल के लिए टल गया था। चाय पी कर वहां से आगे बंतोली के लिए चल पड़े। बंतोली से आगे आती है एकदम खड़ी चढ़ाई जो अच्छे अच्छों का दम निकाल देती है जो लगभग आगे पूरे ट्रेक तक चलती है। रास्ते में बहुत कम ही लोग मिल रहे थे।  ज्यादातर बंगाली ही थे।  राजीव जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि अक्टूबर में कहीं भी टूरिस्ट स्पॉट या ट्रेक पे चले जाओ बंगाली ही ज्यादा मिलेंगे क्योंकि इनको इस समय (दुर्गापूजा के समय) काफी छुट्टी मिल जाती है। हम सब को पीछे छोड़ नॉनस्टॉप चल रहे थे। रेस्ट एक मिनट का ही लेते थे वो भी खड़े खड़े।  मैं तो जगह देख कर बैठ ही जाता था।  ही ही ही।

बंतोली से चले अब काफी समय हो गया था। चढ़ाई से पैर थक गए थे और शरीर भी पसीना पसीना हो रहा था।  एक जगह मोड़ पर 5-6 लोहे के बेंच का टीनशेड आया।  पास ही पानी की टोंटी भी थी, वहीं बैग रख लेट गया। राजीव जी भी सामने की बेंच पर लेट गए। वहां 4-5 लड़के पहले से बैठे थे। पूछने पर पता चला कि वो Madmaheshwar Trek कर आये हैं और नीचे लौट रहे हैं।  हमारे लेटे लेटे ही वो नीचे लौट गए।  दो मिनट लेट कर मोबाइल निकल लिया जेब से।  पसीने की वजह से फिंगरप्रिंट काम नहीं कर रहा था तो सोचा हाथ धो आता हूं । मोबाइल बेंच पे रख हाथ मुंह धो आया।  आकर बैग से गमछा निकल हाथ मुंह पोंछ लिए।  राजीव जी भी उठकर बैठ गए और चलने के लिए तैयार थे तो मैं भी बैग उठाकर चल दिया और मोबाइल भाई साहब (हाय मेरा Mobile) वहीं बेंच पर आराम करता रह गया।  आधे घंटे में खडरा के करीब पहुंचे तो फोटो के लिए जेब पे हाथ मारा तो मोबाइल गायब। मेरी तो सांस अटक गई । चेहरे का सारा रंग उड़ गया। रसाला जेब से कहां गया, जेब की तो जिप भी बंद है।

एक सेकंड भी नहीं लगा और याद आ गया कि वहीं लोहे की बेंच पर रह गया। तुरंत बैग राजीव जी के पास छोड़ दौड़ लगायी नीचे को टीनशेड की तरफ।  रास्ते में दो बंगाली परिवार मिले, श्रीनगर वाले लड़के भी मिले सबसे पूछा कि मेरा मोबाइल छूट गया था टीनशेड में मिला किसी को।  सबने कहा हमनें तो नहीं देखा ना ही हम रुके वहां।  थकान तो काफी थी पर मोबाइल सबसे जरुरी था तो 5 मिनट में ही टीनशेड तक पहुंच गया।  देखा तो मोबाइल गायब। दिल बैठ गया और मैं भी। ये क्या अभी 15 दिन पहले ही तो खर्चा कर के लिया था अभी तो सही से चलाना भी नहीं सीखा था और फ़ोन के भरोसे दूसरा कैमरा भी नहीं ले गया था।  मतलब चौतरफा मार हो गयी ये तो। फ़ोन भी गया, एक्के दुक्के फोटो भी गए और आगे अब फोटो आएंगे भी नहीं।  बंटाधार। सब कुछ इतना अच्छा चल रहा था, दो गुडलक साइन भी मिले फिर भी मोबाइल गायब।  ऐसा कैसे हो गया ?  मैं तो कभी ऐसे कोई चीज़ नहीं भूला आजतक।  सारा मज़ा किरकिरा हो गया।  मूड ऑफ हो गया। रोने को मन कर रहा था पर बड़ी ही मुश्किल से दिल पर पत्थर रख टीनशेड से खाली हाथ वापस मुड़ा। 10-15 मिनट फिर ऊपर की तरफ दौड़ लगायी और खडरा पहुंचा राजीव जी के पास।  राजीव जी बोले मिला मोबाइल ? मैंने कहा नहीं मिला। राजीव जी ने सांत्वना दी के कोई बात नहीं मेरे भी दो मोबाइल खो चुके हैं।  जिंदगी है कुछ न कुछ नफा नुकसान चलता ही रहता है।  बात ज्यादा दिल पे मत लो। चाय पीओ थोड़ा आराम करो।

थोड़ी देर वहीं आराम किया। हल्की हल्की बारिश शुरू हो गयी थी।  कुछ देर बारिश रुकने का इंतजार किया ।  यहीं खडरा में Madmaheshwar Trek पे जाने वालों का रजिस्ट्रेशन होता है। हमने भी रजिस्ट्रेशन करवाया। अब बारिश रुक गयी थी तो बिना मोबाइल भारी मन से आगे के ट्रेक पे रवाना हुए। चढ़ाई पूरा जोर लगवा रही थी। हालत ख़राब होने लगी थी सुबह से शाम जो होने को आयी थी चलते चलते और मोबाइल खोने का झटका अलग से था। चलते चलते यही फाइनल हुआ कि आगे जो भी पहला गांव या होमस्टे आएगा वहीं रात रुक जायेंगे। थोड़ा थोड़ा अंधेरा होने लगा था। राजीव जी ने टॉर्च जला ली।  चले जा रहे थे चले जा रहे थे पर कोई गांव या होमस्टे नहीं दिखा।  आखिर में 7:30 बजने को आये तो एक मैखंबा नाम की जगह आयी।  रास्ते पर ही बोर्ड लगा था गेस्ट हाउस का। बाहर घुप्प अंधेरा और ठंड भी अच्छी खासी हो गयी थी। बाहर कोई लाइट नहीं जल रही थी।  राजीव जी ने पास जाकर दो तीन आवाज लगायी तो एक औरत बाहर आयी टॉर्च लेकर।  खाने और रात रुकने का पूछा तो उसने कहा कि कमरा खाली ही है, आपके रुकने की व्यवस्था हो जाएगी । कमरे में बैग नीचे रख मैं तो तुरंत बैड पे रखी रजाई में घुस गया। एक कप चाय पी तो थोड़ी शरीर में गर्मी आयी। यहां ऊपर हवा बहुत ही ठंडी और तेज थी।  जैकेट शाम को ही पहन लिया था तो सर्दी से बचाव रहा था अब तक।  रजाई में बैठे बैठे ही चाय पी। उसने बताया कि अभी थोड़ी देर पहले ही उसने एक (Leopard) तेंदुए को देखा है ऊपर पहाड़ की तरफ। यहां ऊपर पहाड़ पे रात को अंधेरा होते ही जंगली जानवर घूमना शुरू हो जाते हैं। आपको शाम होते ही कहीं रुक जाना चाहिए था। इतना अंधेरे में नहीं चलना चाहिए था। हमारी तो वैसे ही हालत ख़राब थी, तेंदुए की बात सुन कर और ख़राब हो गयी। खडरा के बाद एक और गांव था नानूचट्टी, पर हमें वो अंधेरे में और रास्ते से ऊपर की तरफ होने के कारण दिखा ही नहीं और हम आगे निकल गए।  लाइट यहां ऊपर पहाड़ों में घर के बाहर कोई जलाता है नहीं। कमरे में सौर ऊर्जा वाले एक दो बल्ब होते हैं बस। खाने का बोल कर फिर रजाई में घुस गया।  मोबाइल तो था नहीं तो कुछ करने को था भी नहीं।  थोड़ी देर राजीव जी से बात करता रहा और वो मोबाइल चलाते चलाते जवाब देते रहे।  एक घंटे बाद खाना आया।  खाने का बिलकुल मन नहीं था फिर भी दाल रोटी जो आयी खायी।  ताजी रोटी हमारे कमरे तक आते आते ठंडी सी हो चुकी थी। खाना बेस्वाद ही लगा शायद ऊंचाई ने असर दिखाना शुरू कर दिया था। 600 रूपये रात रुकने और खाने के लगे। राजीव जी ने बताया यहां ऊपर पहाड़ों में भूख प्यास कम ही लगती है पर खाना खाना ही चाहिए, पानी भी दिन भर में दो बोतल तो कम से कम पी ही लेना चाहये नहीं तो तबियत बिगड़ जाती है।  खाना खाया और मोबाइल को याद करता करता रजाई ओढ़ के सो गया।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, चश्मे के साथ सेल्फी


Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, ये आया लोहे का पुल

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, फोटो सेशन चालू है

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, ये छोटे वाला पुल है
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, साथ साथ नीचे बहती नदी 

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, राजीव जी चलने में खूब तेज हैं
























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