Friday, November 29, 2019

Khirsu In Uttarakhand उत्तराखंड का खिर्सू

Khirsu In Uttarakhand

Khirsu In Uttarakhand उत्तराखंड का खिर्सू

खिर्सू उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले का एक बहुत ही सुंदर पर्यटक स्थल है।  पर्यटकों की भीड़ भाड़ से परे एक शांत रमणीक जगह। खिर्सू को गढ़वाल का छुपा हीरा भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।  खिर्सू पौड़ी से 11 किलोमीटर और देहरादून से 92 किलोमीटर की दूरी पर है। खिर्सू एक गांव है जो उत्तराखंड राज्य के गठन के समय एक पर्यटक स्थल के रूप में उभरा और उसे पर्यटक स्थल का दर्जा दिया गया।  खिर्सू की समुद्रतल से ऊंचाई सिर्फ 1900 मीटर है लेकिन घने देवदार और बांज के पेड़ होने से गर्मियों में भी ठंडा रहता है और सर्दियों में हल्की बर्फ़बारी से पर्यटकों का स्वागत करता है जो इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देती है।  यहां सेब के बगीचे भी हैं जहां आप सेब पकने के मौसम में उनका आनंद ले सकते हैं। खिर्सू से हिमालय की कई जानी पहचानी बर्फ से लदी चोटियां दिखाई देती हैं जो हमेशा से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहीं हैं। 


Khirsu

आज भी राजीव जी अलार्म बजने के साथ ही उठ गए।  अलार्म सुन कर मेरी भी नींद खुल गयी थी पर थोड़ी देर और बिस्तर में ही घुसा रहा।  सुबह की नींद भला किसे अच्छी नहीं लगती।  5:30  बजे राजीव जी के आवाज देने पर ही उठा।  राजीव जी नहा धो कर रेडी हो चुके थे और मोबाइल के नोटिफिकेशन चैक करने लगे। मैं जल्दी से फ्रेश हो नहा आया।  आज हमें वापस दिल्ली लौटना था और खिर्सू भी देखना था जो हमारे रास्ते में ही था।  सुबह के 6 बजे हम रूम खाली कर बाइक पे सवार हो चुके थे।  रूम का किराया रात को ही दे दिया था। श्रीनगर 560 मीटर की ऊंचाई पर है और खिर्सू है 1900 मीटर पर तो हमें आज खिर्सू तक चढ़ाई ही मिलने वाली थी।  सुबह सुबह सड़क पर सैर करते करते आदमी-औरत जवान और बूढ़े काफी लोग मिले।  सभी को सुबह की सैर करनी चाहिए। बहुत अच्छी आदत है।  सुबह का समय था तो सड़क पर ट्रैफिक भी नहीं था और पंछी सड़क पर ही कूदा फांदी कर रहे थे।  बहुत सारी रंगबिरंगी चिड़ियां , उत्तराखंड का राज्यपक्षी मोनाल भी दिखा लेकिन हमारे फ़ोन निकालने से पहले ही सब उड़ कर पेड़ों में छिप जाते और हम किसी की भी अच्छी साफ़ फोटो नहीं ले पाए। वैसे भी सब पंछी बहुत शर्मीले होते हैं किसी के पास नहीं आते।  झट से फुर्र हो जाते हैं।  एक लोमड़ी भी सड़क पार करती दिखी। एक छोटे से कस्तूरी हिरण भी दिखा।  बहुत ही सुंदर बिना सींग वाला।  वो भी हमें देख एक ही छलांग में पेड़ों में छिप गया।  राजीव जी ने बाइक पीछे ही रोक दी थी और मैं धीरे धीरे चल कर उसे देखने और फोटो लेने आगे गया जहां वो ऊपर की तरफ पेड़ों में छुपा था।  वो भी वहीं खड़ा हमारे जाने का ही इंतजार कर रहा था।  जैसे ही उसने मुझे देखा झट से एक और छलांग और और घने पेड़ों में खो गया।  मैं लौट आया खाली हाथ बिना फोटो के।  हां दो बार देख लिया उसे उसके प्रकृतिक वातावरण में एकदम आजाद।  बहुत बहुत सुंदर जीव है।  सड़क में अभी भी चढ़ाई चल ही रही थी और बाइक भी अपना जोर लगाकर हमें लिए चले जा रही थी।  साढ़े आठ खिर्सू पहुंच गए।

बहुत सुंदर शांत छोटा सा गांव। यहीं सबसे पहले वाले चाय परांठे की दुकान पर ही  बाइक रोक दी।  अभी थोड़ी देर पहले ही दुकान खुली थी। आलू उबाल कर बनाया पराठों का मसाला बन कर रेडी था।  हमने भी देर ना करते हुए दो परांठे और चाय का आर्डर दे दिया।  पति पत्नी दोनों मिल कर काम संभाल रहे थे।  अपने काम में बहुत तेज। सब कुछ मिनटों में ही रेडी कर दिया।  परांठे कम तेल घी के और करारे बनाने का कह दिया।  परांठे अच्छे बने थे।  एक एक परांठा खाने के बाद एक हाफ हाफ और खाया।  चाय भी सही बनी थी।  नाश्ता कर हम बाइक वही छोड़ हम चले GMVN के रेस्ट हाउस की तरफ।

यह खिर्सू की सबसे बेस्ट लोकेशन पे बना है।  सामने दिखता हिमालय आपके सब दुःख दर्द भुला देता है।  आम तौर पर GMVN के सभी गेस्ट हाउस सबसे प्राइम लोकेशन पर ही होते हैं इसने भी यही साबित कर दिया।  एकदम शांत बिना भीड़भाड़।  गेस्ट हाउस के एंट्री गेट के अंदर ही रेस्टोरेंट कुछ लोग नाश्ता कर रहे थे।  गेस्ट हाउस के आगे बहुत ही सुंदर फूलों का बाग लगा है।  रंगबिरंगे फूल खिले थे पीले, सफ़ेद, लाल, गुलाबी, संतरी रंग और भी बहुत सारे। तीन चार रंग के तो गेंदे के ही फूल थे जिन्हें मैं पहचान पाया बाकी आप देखना आप पहचान लेते हो सब को या नहीं। खूब फोटो लिए।  पूरी ट्रिप में ये जगह सब से ज्यादा रंगीन थी। हरी हरी घास का मैदान और उसमें लगे फूल किसी का भी मन मोह लें।  किनारे किनारे ऊंचे रंगीन झंडे लहरा रहे थे।  पूरा लक्ज़री लुक विद सामने हराभरा और बर्फीला हिमालय। आधा घंटे में जितना आँखों और दिल में समेट सकते थे समेट लिया।  बचा खुचा मोबाइल ने समेट लिया। बढ़िया कैमरे का मोबाइल ऐसी जगह पर ही फोटो खींच के पैसे वसूल कराता है। घर लौटने का समय हो गया था और सफर अब काफी लंबा और थकाऊ होने वाला था।  सतपुली पार हुआ और शुरू हुई शहरों की भीड़।  कोटद्वार तक नॉनस्टॉप ही चलते रहे।

नजीबाबाद आते आते जोरों की भूख लग गयी थी।  अब एक अच्छे अच्छे ढाबे की तलाश थी जहां अच्छा खाना मिल जाये पर कोई भी अच्छा खाने का ढाबा नहीं आ रहा था।  कुछ आये वो हमें कुछ अच्छे नहीं लगे तो आगे बढ़ते गए।  देखते देखते बिजनौर बायपास भी आ गया लेकिन अभी भी तलाश जारी थी।  मेरा भूख से हाल बुरा था।  सुबह के परांठे तो कब के बाइक के सफर ने पचा दिए पता ही नहीं चला।  राजीव जी को कहा राजीव जी इतने दिन भी पानी जैसी दाल और मैदे की रोटियां ही खायी हैं उनसे तो कुछ अच्छा करारा ही मिलेगा रोक लो कहीं जैसा होगा खा लेंगे अब और सहा नहीं जाता।  वैसे भी मैं पीछे बैठा वेहला ही था तो बार बार भूख पे ही ध्यान जा रहा था और दोपहर के दो भी बज गए थे।  राजीव जी ने दिलासा दिया अब जो भी होटल ढाबा आएगा वहीं रुक जायेंगे।  कुछ दूर और आगे चले तो एक ढाबा आया।  कोई ग्राहक नहीं बिलकुल खाली जैसे हमारा ही इंतजार कर रहा था।  वहीं बाइक रोक दी।  ढाबे की सबसे अच्छी बात ये होती कि वहां खाट बिछी होती हैं खूब सारी और हम जैसे थके हुए राहगीरों को वो खाट फाइव स्टार होटल के डनलप के गद्दों का सा आराम देती है। बाइक रोक तुरंत एक एक खाट पे लेट गए और कमर सीधी की।  परम आनंद । परम आनंद । ढाबे वाले को पूछा खाने में क्या है तो उसने कई सब्जिओं के नाम गिनाये।  राजमा दाल, फूल गोभी की सब्जी और दही रोटी का आर्डर लेटे लेटे ही दिया।  करीब बीस मिनट में खाना लग गया।  सड़क के किनारे ही होने के कारण गाड़ियों से थोड़ी धूल उड़ रही थी जिसने खाने का मजा बिगाड़ा पर फिर भी मुझे खाना काफी अच्छा लगा।  बिल आया 180 रुपए।  खाना खा और पंद्रह मिनट आराम किया और फिर चले वहां से दिल्ली की तरफ क्योंकि अब नॉनस्टॉप ही दिल्ली तक बाइक चलानी थी और लेट भी काफी हो रहे थे और आगे ट्रैफिक भी और बढ़ना था।  खतौली आते आते ही फिर से थकान ने घेर लिया लेकिन चलते रहे। खतौली से नहर रोड़ पकड़ ली।  बाइक चलाये जा रहे थे लेकिन थकावट से रास्ता बहुत लंबा लग रहा था।  मोटरसाइकिल पर बैठे बैठे पिछवाड़े का भी बुरा हाल हो गया था।  हर पांच मिनट में थोड़ा ऊपर उठ कर उसे आराम देने की कोशिश हो रही थी।  बड़ी ही मुश्किल से दिल्ली पहुंचे। रात के आठ बज गए थे। थक कर एकदम चूर हो चुके थे।  राजीव जी ने मुझे दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन पे उतार दिया जहां से मुझे शास्त्री नगर मेट्रो और वहां से सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन जाकर गाडी बीकानेर की ट्रेन पकड़नी थी और राजीव जी का घर तो वहीं थोड़ी दूर ही था। एक बड़ा सा धन्यवाद देकर राजीव जी से विदा ली। इस सफर का पहला और आखरी दिन थोड़ा भागादौड़ी का रहा बाकी तीन दिन बहुत आराम और मजे से कटे।  चलते चलते राजीव जी ने अपनी पानी की बोतल मुझे दी और कहा के ले जाओ अभी रास्ते में काम आएगी।

राजीव जी एक अच्छे और सुलझे हुए आदमी हैं।  मित्रमंडली में अपने मस्तमौला मजाकिया अंदाज के लिए मशहूर हैं।  दोस्तों की टांग खिंचाई करने में तो इन्हें महारत हासिल है।  इनकी घुमक्क्ड़ी के बारे में कहें तो इन्होंने लगभग पूरे भारत को SUV से नाप रखा है।  शायद ही कोई ऐसा जिला या शहर हो जहां ये ना गए हों। पूरे दो दशकों से घुमक्क्ड़ी जारी है। अब पहाड़ों की ट्रैकिंग में ज्यादा रूचि लेते हैं।  पचास पार हैं लेकिन फिट और जिंदादिल। ट्रैकिंग पे भी ये हमेशा मुझ से तेज और आगे ही चले ।  इन पांच दिनों में इनके साथ की घुमक्क्ड़ी में मैंने काफ़ी छोटे बड़े जिंदगी और घुमक्क्ड़ी के सबक सीखे जो भविष्य में मेरे काम आएंगे।

शास्त्री नगर मेट्रो उतर कर पैदल ही दस मिनट में सराय रोहिल्ला पहुंच गया।  ट्रेन 11:30 की थी और अभी 9 बजे थे।  राजीव जी की बोतल में पांच रुपये में पानी फिल करवाया और वहीं स्टेशन की सब्जी पूड़ी खायी।  साथ ही साथ सफर से बचा हुआ बीकानेरी भुजिया भी साफ़ कर दिया। बैठ गया आराम से पसर कर स्टेशन की बेंच पर। एक फौजी भाई आया साथ वाली सीट पर सादी वर्दी।  काफी देर उससे गप्पें मारी। जम्मू में पोस्टेड था और गांव से जम्मू लौट रहा था । किसी ऑफिस के काम से आया था दिल्ली और कागज ऑफिस जमा करवा कर दो दिन घर जा आया था क्योंकि बीच में संडे की छुट्टी आ गयी थी। उसकी ट्रेन पहले थी और उसने समय से अपनी गाडी पकड़ ली। मेरी ट्रेन का भी समय हो चला था और दस मिनट बाद मेरी ट्रेन भी प्लेटफार्म पे लग गयी। अपने नंबर की सीट खोज के आराम से लेट गया । जब तक गाडी नहीं चली तब तक मोबाइल चलाया और गाड़ी चलते ही लम्बी तान के सो गया।  सुबह 7:30 बजे बीकानेर आकर ही नींद खुली।  वहां आदित्य मुझे लेने स्टेशन पे आ गया था और उसके साथ अपने घर पहुंच गया। पांच दिन चार रात का खाना, रुकना और पेट्रोल का सब मिलाकर आधा मेरे हिस्से में 2700 रूपये खर्चा आया। श्री मध्यमहेश्वर की ये मेरी पहली घुमक्क्ड़ी काफी किफायती रही और यादगार भी।


मेरा यात्रा वृतांत पढने के लिए आपका धन्यवाद
फिर मिलूंगा एक नई जगह की घुमक्क्ड़ी के नए किस्सों के साथ






Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, है ना शानदार नज़ारा 

Khirsu, सरकारी विवरण खिर्सू के बारे में




Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, बहुत बढ़िया गार्डन बनाया है

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, दोनों तरफ फूल खिले हैं 

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, बॉटनी में थोड़ा कमजोर हूं इसलिए इसका नाम नहीं पता

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, खिर्सू का गुलाब

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, लाल फूल

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, गैंदे के फूल

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, ये गुलाब का भाई

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, फूल खिले गुलशन गुलशन

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, गेस्ट हाउस के साथ के फोटो

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, राजीव जी और मैं कुलवंत

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Khirsu, छोटी सी गाय कुर्सी से जरा सी ऊंची है बस

Khirsu in Uttarakhand
Khirsu, खिर्सू से रवानगी लेते हुए





















Kartik Swami Temple । कार्तिक स्वामी मंदिर ।

Kartik Swami Temple । कार्तिक स्वामी मंदिर । 

21/10/2019

Kartik Swami Temple । कार्तिक स्वामी मंदिर ।

 
कार्तिकस्वामी मंदिर रुद्रप्रयाग जिले का एक पवित्र धार्मिक स्थान और पर्यटक स्थल है।  रुद्रप्रयाग-पोखरी मार्ग से रुद्रप्रयाग से कार्तिकस्वामी मंदिर की दूरी 38 किलोमीटर है। कार्तिकस्वामी मंदिर की ऊंचाई समुद्रतल से 3050 मीटर (10006 फीट) है और मंदिर साल के बारह महीने खुला रहता है। कनकचोरी की समुद्रतल से ऊंचाई 2800 मीटर है।  यह करीब 3 किलोमीटर का आसान सा ट्रैक है जिसमें आप केवल 250 मीटर की ऊंचाई और प्राप्त करते हैं जो इसे एक आसान श्रेणी का ट्रैक बनाता है।  जैसे जैसे आप ट्रैक पर चलते जाते हैं हिमालय पर्वतश्रृंखला के सुंदर दृश्य आपका मन मोह लेते हैं।  मंदिर से आपको मध्य हिमालय के दर्शन होते हैं जिसमें तीन तरफ हिमालय की चोटियां और चौथी तरफ मैदानी इलाका दिखाई पड़ता है।  यहां से आपको चौखम्बा, केदारनाथ, मेरु-सुमेरु, नीलकंठ, द्रोणागिरी, नंदाघुंटी, त्रिशूल पर्वत, नंदादेवी पर्वत समूह, थलयसागर, और बंदरपूंछ की चोटियां दिखती हैं जिनकी पहचान अनुभवी ट्रैकर ही कर पाते हैं।  एक लोकल गाइड के अनुसार आप एक साफ़ दिन में यहां से करीब 300 छोटी बड़ी चोटियां देख सकते हैं।


Kartik Swami Temple

एक बार भगवान शिव एक बार अपने दोनों पुत्रों (कार्तिकेय जी और गणेश जी) की परीक्षा लेने के लिए उन्हें कहा कि वे पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर आएं और जो सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर यहां आएगा उसे वह माता पिता की पूजा करने करने का प्रथम अवसर प्राप्त करेगा।  श्री कार्तिकेय जी अपने वाहन मयूर से ब्रह्मांड की परिक्रमा को चले वहीं गणेश जी ने अपने माता पिता की ही परिक्रमा कर (श्री गणेश जी के लिए उनके माता पिता ही उनका ब्रह्मांड थे) प्रतियोगिता जीत ली जिससे कार्तिकेय जी क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने शरीर का सारा मांस माता पार्वती को और सारी हड्डियां पिता शिव को दे दीं जो अभी भी मंदिर में मौजूद बताते हैं और भक्त उनकी पूजा करते हैं।

उखीमठ से आगे:-  उखीमठ से देओरीया ताल भी नज़दीक ही था परन्तु उसे अगली बार के लिए रख दिया और कार्तिकस्वामी मंदिर/ट्रेक चलने का निर्णय लिया गया।  उखीमठ से कुंड, भीरी, और चन्दरनगर होते हुए मोहनखाल पहुंचे।  वहीं रुक एक होटल पर खाना खाया और एक बड़ा बिस्कुट का पैकेट ले लिया कि कहीं ट्रेक पर भूख लगी तो ये काम आएगा । पानी की दो बोतल पहले से ही बैग में टंगी थी। मोहनखाल से चल कनकचोरी पहुंचे।  उखीमठ से कनकचोरी तक करीब ढाई घंटे का समय लगा। यह एक छोटा सा गांव है। यहीं से कार्तिक स्वामी मंदिर का ट्रेक शुरू होता है। यहीं एक चाय की दुकान पर बाइक खड़ी की और बैग दुकान में रख  दिए।  बैग रखने के उसने कोई पैसे नहीं लिए।  मंदिर चलने से पहले दुकान पे एक एक चाय पी।  दुकान वाले की भी तो कुछ बिक्री करवानी ही थी हमारे बैग जो रखे थे वहां। चाय के कप का साइज काफी बड़ा था और चाय भी अच्छी बनी थी।  घड़ी के कांटे दोपहर का एक बजा रहे थे। सवा एक बजे ट्रेक शुरू किया।

शुरु में ट्रेक एक घने पार्क की पगडण्डी का एहसास कराता है।  धीरे धीरे जंगल थोड़ा सा घना हो जाता है और पगडण्डी पेड़ों की छांव में चलती जाती है।  थोड़ा सा जंगल और घने पेड़ों के शुरुआती रास्ते के अलावा सारा ही रास्ता पक्का और अच्छा बना हुआ है। करीब एक घंटे में आप धार पर पहुँच जाते हैं जहां से आस पास का इलाका, दूर तक फैला मैदानी इलाका और हरे भरे पहाड़ और घाटियां दिखने लगती हैं।  अब यहां से ट्रेक धार (दोनों तरफ पहाड़ी की ढलान और पर्वत पर जो थोड़ी समतल जगह हो जिस पर चला जा सके पहाड़ के ऊपर ऊपर) पर ही चलता है पक्की पगडण्डी पे।  पगडण्डी थोड़ा U बेंड लेती है तो हम शॉर्टकट के चक्कर में एक कच्ची पगडण्डी पे चल पड़े जो हमें सीधी मंदिर तक जाती लग रही थी।  हमें क्या पता था के हमारा शॉर्टकट लोंगकट बन जायेगा और आगे और नई मुसीबत आएगी ।

कच्ची पगडण्डी धार के बराबर निचे निचे चल रही थी तो हम आश्वस्थ थे कि हम सही दिशा में चल रहे हैं और कहीं आगे रास्ता ना मिला तो थोड़ा वापस आकर पक्के रास्ते हो जायेंगे।  चलते रहे चलते रहे।  मंदिर से थोड़ा पहले बने संतों का आश्रम और मंदिर समिति भवन के पास चल रहे जनरेटर की आवाज आनी शुरू हुई और आगे बढ़ने के साथ ही धीरे धीरे कम भी होने लगी लेकिन मंदिर अभी भी साफ़ सामने ऊपर ही दिख रहा था तो हम चलते रहे। पगडण्डी छोटी होने लगी थी और एक जगह लकड़ी के लट्ठ से बंद भी की गयी थी।  हम वो भी पार कर गए और एक नई छोटी सी पगडंडी और पकड़ फिर चलते रहे।  अब हम ऐसी जगह पर थे जो मंदिर से करीब 150 फीट नीचे थी और ऊपर कोई रास्ता नहीं जा रहा था। एकदम सपाट खड़ी चढ़ाई, सिर्फ बड़े बड़े पत्थरों में से पानी के कटाव से थोड़ी सी जगह बनी हुई थी जहां से कोई चढ़ने की कोशिश ही कर सकता था बाकी तो रॉक क्लाइम्बिंग वाला भी उन सीधे खड़े पत्थरों पे बिना रस्सी नहीं चढ़ पाए। अब यहीं से वापस लौट जाना चाहिए था और वापस पक्की पगडण्डी पकड़नी थी लेकिन हम वापस लौटने में समय खराब नहीं करना चाहते थे और सीधी चढ़ाई चढने की एक ट्राई करना चाहते थे।  परेशानी यह थी की अगर आधे या आधे से ज्यादा खड़ी चढ़ाई चढ़ने पर आगे कहीं और बड़ा पत्थर आया और वो पार ना हुआ तो उस जगह से लौटना बहुत मुश्किल होगा और कोई ना कोई चोट लगना तय था और ज्यादा फिसल गए तो सीधा पत्थरों पर गिरते गिरते आएंगे और प्राण-पखेरू यहीं घाटी में ही उड़ जायेंगे।  पत्थरों के किनारे मिट्टी में उगी सुखी सी घास के अलावा कुछ नहीं था जिसे पकड़ हम ऊपर चढ़ सकें और पत्थर बहुत बड़े बड़े थे आठ-आठ दस-दस एकदम फुट चिकने सपाट सीधे खड़े। मेरा कद छ फुट से ज्यादा है तो मैंने आगे थोड़ी दूर तक चढ़ कर देखने की कोशिस की जो कामयाब रही और राजीव जी को भी आने का रास्ता बताता हुआ आगे चढ़ने लगा। घास पकड़ पकड़ कर और पैर जमा जमा कर आगे और ऊपर चढ़ते जा रहे थे।  हिम्मत और कोशिश रंग ला रही थी लेकिन अब नीचे देखते ही जी घबराने लगा था कि अगर कहीं आगे का रास्ता ना मिला तो गए काम से।  आधे से अधिक रास्ता तय हो चुका था।  वहीं रुक थोड़ा सा सुस्ताये और आगे के संभावित रास्ते को खोजने लगे। यहां भी हमारा भाग्य बली था और ऊपर मंदिर पर चल रहे ट्रेक और प्लेटफार्म की मरम्मत में लगे दो मजदूर हमारी तरफ से दिख रही मंदिर परिसर की दीवार पर सुस्ताने बैठे दिखे। हमारे लिए वो लोग वो उम्मीद की किरण थे जिसे हर मुसीबत में फंसा व्यक्ति खोजता है।  हम दोनों ने हाथ हिलाकर और चिल्ला चिल्ला कर उन्हें Hello Hello Hi कहा और रास्ता पूछा।  उन्होंने भी हाथ हिलाए और हमें चट्टान के किनारे किनारे आने का कहा।  अब हिम्मत और बढ़ी तो थोड़ा और ऊपर चढ़ते गए।  कहीं कहीं पैरों के नीचे से फिसलते पत्थर जान निकाल देते थे।  थोड़ी देर बाद हम मंदिर से करीब तीस फुट नजदीक तक पहुंच चुके थे। आगे का रास्ता अब भी कुछ स्पष्ट नहीं था।  एक बार फिर उनको आवाज देने पर उन मजदूरों में से एक लड़का वापस लौट के दीवार की तरफ आया। हमने उससे पूछा के अब यहां से पत्थरों के किस तरफ से आना सही रहेगा। उसने हमें थोड़ा किनारे की तरफ से आने को कहा।  अब यहां राजीव जी ने अपनी जादुई शक्तियों का प्रयोग कर उस भले मानुष को कहा कि "वहां बैठे ही हो यहां नीचे आके ही थोड़ा रास्ता बता दो"। लड़का तुरंत दीवार से खाई की तरफ हमें रास्ता बताने और सहायता के लिए नीचे आ गया और उस लड़के की मदद से ही हम ऊपर चढ़ मंदिर की दीवार फांद कर मंदिर परिसर में पहुंच गए। ऊपर पहुंच कर भगवान को धन्यवाद दिया जिसने उस लड़के के रूप में हमें उस मुसीबत की खाई से निकला।  राजीव जी ने भी उस लड़के को धन्यवाद दिया और कुछ माया भी भेंट की। हमें तो लगा जैसे खुद श्री कार्तिकस्वामी जी ने ही हमें उस लड़के के रूप में दर्शन दिए और हमारी मदद की। उसके साथ कुछ फोटो भी लिए और एक बार फिर उसे हमारी सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया।

ऊपर आकर कुछ देर उखड़ी सांसो और तेजी से धड़क रहे दिल को आराम दिया और सामान्य हुए। ऊपर मंदिर पर अच्छी हवा चल रही थी और शाम भी होने लगी थी।  एक तरफ मैदानी इलाका दिख रहा था तो तीन तरफ हिमालय की चोटियां चमक रहीं थी।  बहुत बहुत सुंदर दृश्य था जो बहुत मेहनत के बाद देखने को मिला था।

अब मंदिर में दर्शन किये और पीले चंदन का तिलक भी लगाया।  मंदिर अच्छा बना हुआ है। मंदिर के प्रांगण शुरू होने पर यहां खूब छोटी बड़ी घंटिया टंगी हैं जो बहुत सुंदर लगती हैं। यहां से दिख रहे मध्य हिमालय को जी भर के आंखों और दिल में भरा और कुछ फोटो भी लिए। शाम के समय बादल ना होते तो और अच्छे से हिमालय के दर्शन होते। वैसे भी सुबह और शाम के समय ही आप हिमालय को उसके सबसे सुन्दरतम रूप में देख सकते हैं बाकी समय बादल आपको हिमालय के पूरे दर्शन नहीं होने देते। मंदिर पहुंचे आधा घंटे से ज्यादा का समय हो चुका था।  सूर्यदेव भी अब अपने घर लौटने की राह चलना शुरू कर दिए थे और शाम होने लगी थी इसलिए हमने भी एक बार फिर कार्तिकस्वामी जी को याद और प्रणाम किया और इस बार सही और पक्के रास्ते से लौटने का निश्चय किया।

अब रास्ता पक्का और हल्की ढलान का था।  आराम से चले जा रहे थे और सोच रहे थे के अगर इसी रास्ते से आते तो कितनी आसानी से मंदिर तक पहुंच जाते।  थोड़ी देर बाद मंदिर की समिति का का भवन और संतों के रहने के कमरे आये।  एक छोटा सा पानी का कुंड भी बना हुआ था।  बहुत ही सुंदर।  यहां से भी बहुत सुंदर दृश्य उपस्थित होता है और आप यहां भी रुक कर कुछ फोटो ले सकते है। पीने के पानी की भी व्यवस्था है। कुछ फोटो लिए और पानी के दो घूंट पी नीचे चल दिए।  लौटते समय हमें वो कच्ची पगडंडी दिखी जिस पे चल हम आगे बंद रास्ते और खड़ी चट्टानों में फंस गए थे। एक दूसरे को देख हम अपनी हंसी रोक नहीं पाए और अपनी ही मूर्खता हंसी आयी।  माहौल कुछ हल्का हुआ तो कुछ गीत गुनगुनाते  हुए नीचे चल दिए ।  गानों से याद आया कि  मोबाइल में भी कुछ गाना बजाया जाए।  मैने अपने मोबाइल में एक पंजाबी गाना बजाया और थोड़ी सी आवाज बढ़ा दी।  आवाज बढ़ाते ही हमारे से करीब 20 फुट नीचे पेड़ों में से कोई जानवर घुर्र घुर्र की आवाज करता करता हुआ तेजी से पीछे घने जंगल की तरफ भाग गया।  केवल एक झलक ही दिख पायी। पता नहीं क्या था कोई जंगली सुवर, हिरन, या भालू। बन्दर भी हमें उस पूरे रास्ते कोई नहीं दिखा। गांव का कोई कुत्ता भी नहीं हो सकता क्योंकि वो जरूर दुबारा भोंकता और इतने गहरे घने जंगल में नहीं जाता । एक बार फिर दिल डर से जोरों से धड़कने लगा और गला सूख सा गया।  तुरंत रफ़्तार बढ़ाई और उन घने पेड़ों को पार किया। थोड़ा खुले में आकर सबसे पहले पानी से गला तर किया और सामने दिख रही केदार, पंचाचूली, और चौखंबा के एक बार फिर से दर्शन किये और जल्दी जल्दी में ही दो चार फोटो चलते चलते ही लिए।  शाम के समय बर्फ से लदे पहाड़ बहुत गजब दिख रहे थे।  डर और जल्दी ना होती तो थोड़ा और रुकते।  करीब पांच बजे नीचे दुकान से समान बाइक पे लाद फिर चल पड़े।  बिस्कुट के पैकेट वैसे ही लौट आया साथ में कहीं जरुरत ही ना पड़ी खाने की या ये कहें की जान पे बन आयी थी दो बार तो याद ही नहीं आया बिस्कुट खाना हा हा हा।  अब हमें श्रीनगर पहुंचना था।

मंजिल अभी दूर थी रास्ता पहाड़ का वो भी गहराती शाम और आगे रात का।  पहाड़ों की रात भी गहरी काली होती है बिना लाइट तो बराबर में खड़ा आदमी भी न दिखे इतना काला अंधेरा।  पहाड़ी लोगों और ड्राइवरों को अपने पहाड़ के रास्ते का एक एक  मोड़ अच्छे से याद होता है और एक्सपर्ट ड्राइवर होते हैं अपने पूरे पहाड़ी इलाके के लेकिन रात को बहुत लोग शराब पी के भी गाड़ी तेज चलाते हैं और पहाड़ी सड़कें खास तौर से मोटरसाइकिल और स्कूटी जैसे दोपहिया वाहनों के लिए असुरक्षित हो जाती हैं कुछ ऐसे लोगों के कारण और कुछ इलाकों में जंगली जानवरों के कारण। हम भी बदल बदल कर बाइक चला रहे थे और अंधेरा काफी हो चुका था।  रुद्रप्रयाग कब का पीछे छोड़ आये थे।  मोड़ घोड़ वाली सड़क खत्म कर साफ़ सीधी चौड़ी सड़क राजीव जी ने मुझे बाइक चलाने दी। अब बाइक मैं चला रहा था।  चुंकि मैं थोड़ा बाइक धीरे ही चलाता हूं और अब तो रात भी हो गयी थी और रास्ता भी पहाड़ का था तो मैं बाइक 20-25 से आगे नहीं चला पा रहा था।  श्रीनगर अब नज़दीक ही था लेकिन साढ़े आठ बज चुके थे और मेरी रफ़्तार से नौ सवा नौ तो बज ही जाते फिर कहीं धर्मशाला बंद ना हो जाए और फिर रूम के लिए रात को इधर उधर भटकना ना पड़े साथ ही साथ अभी खाना भी खाना था उसके लिए भी तो समय चाहिए तो राजीव जी ने बाइक संभाल ली और मैंने पीछे वाली सीट। उन्होंने ये बाइक भगायी ब्रुम-ब्रुम और 20 मिनट में हम श्रीनगर। बाइक सीधा बाबा काली कमली वाले धर्मशाला के अंदर ही जाकर रोकी। रूम पूछने पर केयरटेकर ने हमें वही परसों वाला रूम का ही इशारा कर दिया।  रूम लॉक नहीं था।  बैग रख तुरंत खाना खाने बाहर आये और फिर से पास ही की गली के भंडारी के होटल में 50 रुपए डाइट में खाना खाया।  मक्खन और दही एक्स्ट्रा ले लिया।  खाना खा सीधा चले रूम की और मुंह हाथ पैर धो धम्म से बिस्तर पर गिरे।  सुबह 5 बजे का अलार्म राजीव जी के फ़ोन में हमेशा सेट ही रहता है तो मुझे अलार्म की जरुरत ही नहीं थी।  मेरा अलार्म राजीव जी ही रहे इन चार दिन। मोबाइल थोड़ा सा चार्ज किया और सो गए।

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, दुकान का फ़ोन नंबर है इस फोटो में
     
Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, राजीव जी

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, घास फूस की फोटो

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, कनकचोरी गांव ऊपर से ऐसा दिखता है। 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, और ये हम गलत पगडण्डी पे

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, इसी लड़के ने हमारी सहायता की थी।  देव बिष्ट नाम था शायद इसका। 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, आ पहुंचे कार्तिक स्वामी मंदिर

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, मंदिर समिति और आश्रम भवन

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, सरकारी बोर्ड कार्तिक स्वामी मंदिर का

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, नज़ारा पहाड़ों का 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, एक और रेस्ट हाउस

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, दूर तक फैला हिमालय 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, एक नज़ारा ये भी 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, बादल ना होते तो ये फोटो भी साफ़ आता

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, हरियाले पहाड़ 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, एक और फोटो 


Madmaheshwar Trek-4, मदमहेश्वर ट्रेक


  Madmaheshwar Trek। मदमहेश्वर ट्रेक । 

चौथा दिन (21 सितम्बर 2019)

Madmaheshwar Trek । मदमहेश्वर ट्रेक । 


मकड़ी वाली घटना के बावजूद रात अच्छी कट गयी थी। 5:30 बजे राजीव जी ने जगाया।  राजीव जी चलने को तैयार थे। मैं फ्रेश हो आया। आज सुबह 5 बजे यहां से चलने का विचार था लेकिन दुकान वाले ने रात को ही मना कर दिया था कि सुबह अँधेरे में मत जाना। आगे पुल के पास कई बार जंगली जानवर सुबह तक घूमते दिखे हैं।  उसने बताया सुबह 5:30 बजे घोड़े वाले निकलते हैं यहीं गांव से, उनके बाद ही जाना।  घोड़ों की आवाज से जंगली जानवर वापस घने जंगल में लौट जाते हैं। हम 6 बजे गोंडार से चले।  रूम और खाने के पैसे रात को ही चुका दिए थे। गोंडार से आगे करीब एक घंटे बाद राजीव जी के मोबाइल की रेंज आयी।  मोबाइल चेक किया तो मेरे लिए घर से मैसेज आया हुआ था और घर पर सब मेरी चिंता कर रहे थे।  घर फ़ोन लगाया तो पत्नी ने रोते रोते फ़ोन उठाया। पूछने पर पता चला कि उन्होंने ट्रेक शुरू होने वाले दिन ही शाम को मेरे नंबर पर फ़ोन किया था जो किसी और आदमी ने फ़ोन उठाया था।  उसकी भाषा भी घर पर किसी को कुछ खास समझ नहीं आयी।  उसने टूटी फूटी हिंदी में बताया की उसे फ़ोन गिरा हुआ मिला लोहे पे।  घर वालों को लगा मेरे साथ कुछ दुर्घटना हो गयी है और मैं कहीं गिर गया इसीलिए मेरा फ़ोन किसी को गिरा हुआ मिला है।  वहां फ़ोन के सिग्नल भी कभी कभी ही आते थे तो आवाज साफ़ भी नहीं आती थी।  उन्होंने बार बार फ़ोन कर के पूरी बात समझी, पर अभी भी मुझ से बात नहीं हो पा रही थी क्योंकि राजीव जी के फ़ोन में सिग्नल नहीं आ रहे थे।  उन्होंने व्हाट्सप पर मैसेज किया राजीव जी के फ़ोन पर इस उम्मीद पर की जब भी मोबाइल नेटवर्क में आएगा ये मैसेज उन तक पहुंच जायेगा। सुबह जब रांसी के पास पहुंचे तो राजीव जी ने मोबाइल का फ्लाइट मोड ऑफ किया।  धड़ा धड़  मैसेज आते चले गए।  उन्होंने मैसेज देख कर बताया कि कुलवंत तुम्हारे घर से मैसेज आया हुआ है तुमसे बात करनी है जरुरी।  राजीव जी के फ़ोन से घर फ़ोन लगाया तो मुझे सारी बात समझ में आयी और मेरे खोये मोबाइल की खबर मिली।  मुझे पता चला कि फोन किसी घोड़े (खच्चर/टट्टू) वाले को मिला है और वो फ़ोन वापस करना चाहता है।  दिल गार्डन गार्डन हो गया खुशखबरी सुन के। हाथ भी खाली खाली लग रहे थे बिना मोबाइल के।  दिल को तसल्ली हुई कि चलो फ़ोन तो मिल गया नहीं तो फालतू का खर्चा करना पड़ता नए फ़ोन के लिए।  आजकल फ़ोन बिना सब काम अटक जाता है। बड़े काम की चीज़ बनाई है।  एक पूरी की पूरी दुनिया समेटे रहता अपने आप में मोबाइल।  कुछ देर बात कर के राजीव जी को भी खुशखबरी सुनाई। उन्हें तो यकीन ही नहीं हुआ के आजकल के लालच भरे ज़माने में कोई किसी का मोबाइल लौटा सकता है।  मैंने घोड़े वाले को फ़ोन मिलाया तो आवाज कुछ साफ़ नहीं सुनाई दी। नेटवर्क सिग्नल बहुत कमजोर थे और आवाज रुक रुक कर आ रही थी।  मैं ठीक से समझ नहीं पाया कि वो लोग अभी ट्रैक पे कहां हैं । मैंने उसे बताया के हम आधे घंटे में रांसी पहुंच जायेंगे। उसने भी एक घंटे बाद रांसी की दुकान पर मिलने का कहा।  रांसी पहुंच कर एक्स्ट्रा सामान कपड़े जो रांसी की दुकान पर छोड़ कर गए थे वापस बैगों में भरे और गीले कपड़े, तौलिया वगैरा वहीं पत्थरों पे सूखने को डाल दिया। एक चाय भी नमकीन के साथ पी। आज अच्छी धूप खिली थी जिसने चाय के स्वाद को और बढ़ा दिया था। कुछ देर वहीं गप्पें लड़ाते हुए घोड़े वाले का इंतजार करते रहे।  ठीक एक घंटे बाद फिर से घोड़े वाले को फ़ोन मिलाया तो हमें उसकी भाषा और बात समझ नहीं आयी। रांसी की दुकान वाले से उस घोड़े वाले की बात करवाई फिर सारी बात साफ़ हुई। असल में हुआ ये था कि जब हम रांसी वाली दुकान पर पहुंचे थे तो कुछ घोड़े वाले घोड़ों पे सामान लाद रहे थे और सारा सामान लदने पर वो मदमहेश्वर के लिए निकल गए । उन्हीं में से एक के पास मेरा फ़ोन था।  धत्त तेरे की। ऐसे ही एक घंटा ख़राब हो गया। फ़ोन यहीं था और हम फिर भी उसके आने की राह देख रहे थे के फ़ोन आये तो चलें यहां से।  घोड़े वालों को निकले आधे घंटे से ज्यादा का समय हो गया था और हम पैदल उनको पकड़ नहीं सकते थे क्योंकि घोड़े काफी तेज चलते हैं और सामान लदा होने से वो कहीं ज्यादा रुक कर हमारा इंतजार भी नहीं कर सकते थे।  उस घोड़े वाले ने वहीं आगे रास्ते में पगडण्डी की मरम्मत कर रहे ठेकेदार के आदमियों को फ़ोन दे कर उसने हमें फ़ोन पे बताया कि उनसे आकर फ़ोन ले जाना, हम तो अब आगे जा रहे हैं ।

आज अब फिर से ट्रैक शुरू किया और जहां पगडण्डी ठीक करने का काम चल रहा था वहां पहुंचे।  आठ दस लोग पत्थरों को बिछा कर लेवल कर रहे थे।  उन्हें जाकर सारी बात बताई और उन लोगों से फ़ोन ले के आये। मैं बहुत खुश था फोन जो मिल गया था।  मुझे कोई उम्मीद नहीं थी के फ़ोन वापस मिल जायेगा मतलब इतनी नाउम्मीदी थी के एक बार घंटी कर के भी चेक नहीं किया कि फ़ोन चल रहा है या उठाने वाले ने स्विच ऑफ कर रखा है। भाग्य में लिखा कोई छीन नहीं सकता आज ये बात फिर से सिद्ध हो गयी।  उन लोगों को एक बड़ा वाला थैंकयू और चाय पानी के पैसे दे वापस रांसी आये।  घोड़े वाले के लिए भी 500 रुपए रख दिए चाय की होटल पे और फोन करके कहा कि भाई साब बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आपके लिए 500 रुपए दुकान पे रख के जा रहे हैं आप आते समय ले लेना। मदमहेश्वर ट्रैक  के साथ जुड़ने वाली बुरी याद अब ख़ुशी में बदल चुकी थी।  जय हो बाबा मदमहेश्वर जी की।  दिल से भोले बाबा को याद किया और उनकी कृपा के लिए उनका धन्यवाद किया। बाइक स्टार्ट कर निकल ही रहे थे के अचानक से याद आया कि तौलिये यहीं भूल रहे हैं। याद ना आता तो तौलिये के लिए वापस कौन आता और वो यहीं किसी झाड़ी पे टंगे टंगे खत्म हो जाते।  जल्दी से तौलियों को समेट बैग में रखा और निकल पड़े एक नई मंजिल के लिए । चाय अब उखीमठ पहुंच कर ही पी। आज अब आगे की मंजिल थी कार्तिक स्वामी मंदिर। यहां से कार्तिक स्वामी मंदिर के लिए चल पड़े।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, वो घोड़े वाला इन लोगों को फ़ोन देकर आगे चला गया था।  इन्हीं से फिर हम जा कर फ़ोन ले आये। 

Madmaheshwar Trek, राजीव जी मोबाइल पर आगे का रास्ता देखते हुए 

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, धारी देवी माता मंदिर

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, ऐसे होते हैं पहाड़ के रास्ते

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, कहीं धूप कहीं छाया

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, रास्ते का साइन बोर्ड














Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-3

Madmaheshwar Trekमदमहेश्वर ट्रेक-3

20 सितम्बर 2019 (तीसरा दिन)


Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-3

राजीव जी कल की तरह आज भी जल्दी ही उठ गए, मैं बाद में उठा।  उठकर पानी पिया। अब घर तो है नहीं के बिस्तर पर ही चाय मिल जाये। चाय बाद में मिलेगी। बाहर निकलने पर चिल्ड हवा ने स्वागत किया।  ठंड से रोंगटे खड़े हो गए। काफी तेज ठंडी हवा चल रही थी। जैसे तैसे ऐसी ठंड में फ्रेश हो आया। रहने और खाने के पैसे दे हम 6 बजे वहां से चल पड़े। चाय अभी नहीं बाद में।  सुबह सुबह पहाड़ और पेड़ों की हरियाली बहुत ही सुंदर लग रही थी।  पंछी भी चहचहा रहे थे। अजीब अजीब सी आवाजें बना रहे थे। वाह। इट इज प्योर नेचर। सब कुछ बहुत सुंदर लग रहा था। शहर तो कब का पीछे छूट गए थे।  कोई गाड़ियों का या और किसी चीज़ का शोर नहीं। सिर्फ हवा, पेड़ और पंछियों की ही आवाज थी।  रात को नींद अच्छी नहीं आयी थी शायद ऊंचाई की वजह से, नहीं तो थके तो बहुत थे इसलिए नींद अच्छी आनी चाहिए थी। सुबह सुबह धीरे धीरे ही चले जा रहे थे। शरीर अभी बना नहीं था।  घंटे भर चल कर कूनचट्टी पहुंचे।  यहीं से रात को टॉर्च की रौशनी आ रही थी।  अगर मैखंबा रुकने की जगह ना होती या कमरे में पहले से ही लोग रुके हुए होते तो शायद हमें भी यहीं कूनचट्टी आकर ही रुकना पड़ता।  कूनचट्टी पे दुकान वाले को चाय का बोल दिया और उसे रात की तेंदुए वाली बात बतायी जो उस औरत ने हमें बताई थी। दुकानवाला बोला उस औरत ने ऐसे ही बोल दिया होगा उसने आपको डराने के लिए और आप रात वहीं पे रुक जाएं इसलिए।  जंगली जानवरों यहां है तो सही पर जब तक यात्रा चलती रहती है वो पगडण्डी से दूर ही रहते हैं। जब यात्रा बंद हो जाती है और यहां के सब लोग नीचे चले जाते हैं उसके बाद यहां उनका ही राज होता है। चाय पी के थोड़ी देर आराम किया और फिर चल पड़े अपने रास्ते।

अब मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) ज्यादा दूर नहीं था। अब फिर से जंगल जैसा रास्ता शुरू हो गया था।  घने पेड़ों से छन कर आती धूप बहुत सुहानी लग रही थी।  चलते चलते बातें करते करते सुबह के करीब 10:30  बजे हम मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) के सामने थे।  काफी बड़े मैदान में बना है मंदिर। काफी जगह पर तो दुकान और समिति का भवन बना हुआ है।

मदमहेश्वर मंदिर पंच केदार (Panch Kedar) में चौथे नंबर पर आता है। पंच केदार में प्रथम है केदारनाथ मंदिर, दूसरे क्रम पर तुंगनाथ, तीसरे क्रम पर रुद्रनाथ मंदिर, चौथे क्रम पर मदमहेश्वर मंदिर, और पांचवे क्रम पर कल्पेश्वर मंदिर है। मदमहेश्वर मंदिर की (Madmaheshwar Height) समुद्रतल से ऊंचाई 3490 मीटर है और बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple Trek) की ऊंचाई 4267 मीटर है। रांसी गांव (Ransi Village) के आगे जहां तक सड़क बन गयी है वहां से मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Trek Distance) तक की दूरी करीब 17 किलोमीटर है और मदमहेश्वर से बूढ़ा मदमहेश्वर की दूरी करीब 3 किलोमीटर है।

बहुत ही सुन्दर है बाबा का मंदिर। आज तक सिर्फ फोटो में ही देखा था, आज मदमहेश्वर ट्रेक कर के असली में दर्शन हुए हैं। कुछ सेकंड वहीं खड़े खड़े मंदिर और आसपास बिखरी खूबसूरती को निहारा।  मंदिर के पीछे और दायीं तरफ खूब ऊंचे ऊंचे पहाड़ हैं।  मंदिर के बायीं ओर करीब 3 किलोमीटर का ट्रेक है बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर के लिए (Buda Madmaheshwar Temple)। नीचे मंदिर के पास ही समिति की धर्मशाला बनी है और भी दुकानें, ढाबे बने हैं जहां काफी लोगों की खाने रुकने की व्यवस्था हो सकती है। बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple) बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर के लिए थोड़ी दूर तक पगडण्डी पक्की बनी है। आगे फिर घास पे ही थोड़ी सी चढ़ाई है। कोई परेशानी नहीं आती।

मंदिर दिखते ही दूर से ही श्री मदमहेश्वर को प्रणाम किया।  बैग चाय की दुकान की पे रख पहले हम बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple Trek) के लिए चल दिए।  हम बिना पगडण्डी ही चले शुरू में फिर आगे जाकर कच्ची पगडण्डी पकड़ ली जो ऊपर की तरफ जा रही थी।  सीधा बूढ़ा मदमहेश्वर के बराबर जा के ही निकले।  छोटा सा पत्थरों का बना मंदिर बना है।  यहां शिव जी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।  बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple Trek) के मंदिर के मैदान से बर्फीले पहाड़ों की चोटियां साफ़ दिखाई देती हैं जैसे हाथ बढ़ा के छू लो। ऊपर पहाड़ों पर बादल बनना शुरू हो चुके थे लेकिन फिर भी कई बर्फीली चोटियां दिख ही गयीं।  यहां से चौखम्बा नजदीक से दिखती है और बहुत ही बड़ी दिखती है।  मंदिर के पास ही दो छोटे छोटे पानी के ताल हैं। गहरे बिलकुल भी नहीं।  इसी पानी में सुबह के समय चौखम्बा पर्वत की बहुत ही सुन्दर परछाई बनती है जो बहुत लाज़वाब दिखती है, बस हवा ना चल रही हो और पानी हिल ना रहा हो।  बाबा के दर्शन किये पूरी श्रध्दा के साथ और आस पास काफी फोटो खींचे राजीव जी के फ़ोन से लेकिन वो बाद में किसी वजह से फ़ोन से डिलीट हो गए। बहुत ही सुन्दर नज़ारा दिखता यहां से मन भरता ही नहीं बस बैठे बैठे देखते ही रहो।  दर्शन कर आधा पौन घंटा वहीं बिता नीचे को लौट आये। नीचे आते समय आराम से आये। ढलान ही थी तो कोई परेशानी नहीं आयी। अब नीचे आकर बाबा मदमहेश्वर के दर्शन किये और राजीव जी ने पुजारी जी से मंदिर के बारे में, पूजा अर्चना के बारे में जानकारी ली और अपनी श्रद्धा से समिति की पर्ची कटवाई।  चाय वाले के पास जाकर पहले खाना ही खाया और कुछ देर धूप सेक वहीं पास के रूम में लेट गए। खाने की एक थाली के 130 रुपए लगे।  चाय यहां 15 की थी। जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है सब चीज़ों की कीमत भी बढ़ती जाती है। समय अब बारह से आगे का हो चुका था और हम बैग उठा नीचे रांसी गांव (Ransi Village) की तरफ वापस चल दिए।

अब लगभग सारा रास्ता उतराई वाला ही थी।  फिर से कूनचट्टी ही रुके और दोपहर की चाय यहां पी।  रात वाला मैखंबा फिर आया और गया।  मैखंबा से निकलते ही हल्की हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गयी। कुछ देर तो ऐसे ही काम चलाया फिर बैग से चादर निकाल ओढ़ ही ली।  बारिश अब छोटे छोटे ओलों में बदल गयी थी और फुल बरस रही थी।  वहीं रास्ते के किनारे एक बड़े से पत्थर के निचे बैठ गए।  थोड़ा भीग भी गए थे। बारिश से इंद्रधनुष के भी दर्शन हुए। सामने के पहाड़ पर भी होती बारिश देखते रहे।  बहुत बढ़िया नज़ारा था। पौन घंटे बाद बारिश कम हुई तो फिर से चल पड़े।  रास्ता अब फिसलन वाला हो गया था और कहीं कहीं रास्ते पे मिट्टी बह के आ गयी थी।  अब सीधे खडरा आकर ही रुके। मैं यहीं से निचे भागा था मोबाइल ढूंढने जो मिला नहीं। मदमहेश्वर से लौटते समय खडरा तक हमारे साथ आये डॉगी को मैंने वहीं बिस्कुट खिलाये जो वो बड़े मज़े से कुर्र कुर्र कर के खा गया।  उसको बिस्कुट खाता देख मन में बहुत संतोष हुआ।  उसका एक साथी डॉगी और आ गया उसे भी एक बिस्कुट का पैकेट खिलाया।  कुछ देर आराम कर चाय पी के फिर चले तो वो जगह आयी जहां मैं अपना मोबाइल भूला था।  मन फिर भर आया। अफ़सोस। अब क्या हो सकता था। फिर चले बंतोली गांव पार कर के गोंडार पहुंचे। अब करीब एक घंटे से थोड़ा ही ज्यादा का रास्ता बचा था और हम अंधेरा होते ही रांसी पहुंच सकते थे लेकिन वहीं गोंडार में ही रुकने का पक्का किया।  चाय पी और रूम ले लिया।  हमारा रूम होटल के नीचे ही था। अच्छा साफ़ रूम था।  राजीव जी गरम पानी ले के नहा लिए।  मेरा आज अब शाम को मन नहीं था नहाने का लेकिन कल का सारा दिन मोटरसाइकल पर चलना था तो कहीं नहाना नहीं हो पाता इसलिए मैं भी नहा ही लिया।  कहावत भी है के आदमी खा के पछताता है लेकिन नहा के नहीं।  नहाते ही थकान और बारिश में भीगने की ठंड चली गयी। अब खाने की बारी थी।  होटल में चूल्हे के पास बैठ आराम से गरम गरम रोटियां खायीं।  दाल सब्जी भी अच्छी बनी थी।  होटलवाले ने बड़े प्यार और आदर से खाना खिलाया। कई दिन बाद भरपेट भोजन किया।  रूम पे आकर छोटी लाइट जला के सोने की तैयारी ही थी कि मुझे राजीव जी सिराहने कुछ बड़ा मकड़ी जैसा दिखा। हल्की सी लाइट में काली मकड़ी मुश्किल से ही दिख रही थी ।  तुरंत राजीव जी को हाथ पकड़ कर अपनी तरफ किया और मकड़ी दिखाई।  बड़ी लाइट जलाई तो ये बड़ी मकड़ी।  मुझे बहुत घिन आती है मकड़ी से। राजीव जी से कहा आप मारो सैंडल से इसको अब।  राजीव जी- ना।  मुझसे ना होगा ये।  कांपते हाथों से हिम्मत जुटा कर के सैंडल मार मकड़ी को चित्त किया और उसका परलोक का टिकट काटा। राजीव जी के मोबाइल की लाइट जला कर बेड के पीछे चेक किया।  मकड़ी की डेडबॉडी पड़ी थी।  कुछ तसल्ली हुई कि जान बची। मैं तो बहुत डर गया था।  पता नहीं रात को हमें खा जाती तो। मेरे तो पैर के ऊपर से भी निकल जाती तो मुझे तो बुखार चढ़ना पक्का ही था।  डरते डरते लाइट बुझा कर डरा डरा सा मैं सो गया।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, नन्हा चीड़ का पेड़


Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, गांव अब पास ही है 
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, रास्ते में खिले फूल देखकर आपकी सारी थकान छू हो जाती है। 

Madmaheshwar Trek, Ransi Vilage
Madmaheshwar Trek, सारा ट्रेक पक्का बना है। कोई परेशानी नहीं। 



Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रैक-1

Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-1 


Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक 

पहला दिन 18 सितम्बर 2019 (दिल्ली से श्रीनगर)

मैं घुमक्क्ड़ी में नया नया ही आया था परन्तु हमेशा दिमाग में बाइक पे घूमना ही रहता था।  अब ट्रैकिंग का भी थोड़ा थोड़ा शौक जगने लग गया था। इससे पहले 2  बार अमृतसर, 2 बार माता वैष्णोदेवी, और एक बार शिमला ही घूम पाया था जिसमे वैष्णोंदेवी हम 7 दोस्त थे और शिमला मेरे साथ मेरा दोस्त संतोष पांडेय गया था बाकी में परिवार के साथ ही दर्शन किये थे।  

ऎसे बनी Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक पर जाने की योजना:

काफी समय से facebook पर कई ट्रेवल ग्रुप में जुड़ा और अच्छी अच्छी नयी जगहों की जानकारी देखता समझता रहता था। अगस्त 2019 में धौलपुर में Travel Talk Family (यात्रा चर्चा परिवार) का घुमक्क्ड़ी सम्मलेन आयोजित हुआ मास्टर सत्यपाल चाहर जी के घर। गज़ब घुमक्कड़ हैं मास्टर जी।  धौलपुर राजस्थान में ही है तो हिम्मत कर के जाने का विचार बना ही लिया। करीब 40+ जनों की व्यवस्था उनके निवास पर ही थी। वहां मैं सिर्फ संदीप पंवार जी को ही पहचानता था (हालाँकि कभी मिला नहीं था) बाकि सब मेरे लिए अजनबी थे। वहां धौलपुर में 3 दिन जम के ताबड़तोड़ घुमक्क्ड़ी की गयी और लगभग सभी लोगों को अब जानने लगा था। सभी लोग हंसी मजाक वाले थे मुझे कोई परेशानी नहीं आयी। सब के सब धुरंधर घुमक्कड़, सबसे नया मैं ही था वहां। वहीं राजीव जी (दिल्ली) से मिला जिनके साथ मैंने मेरा पहला पहाड़ों का ट्रैक मदमहेश्वर पूरा हुआ।

अब आते हैं ट्रैक पर। 16 अक्टूबर देर शाम को फाइनल हुआ कि 18 अक्टूबर, शुक्रवार को सुबह दिल्ली से बाइक पर जाना है । अगले दिन सुबह 17 को बीकानेर से दिल्ली सराय रोहिल्ला सुपरफास्ट का टिकट टिकट विंडो से बुक करवा के आया (ऑनलाइन अभी सीखा नहीं था क्योंकि कभी जरुरत ही नहीं पड़ी थी)।  रात को 10:30 की ट्रेन थी, दोनों बैग लेकर उसी में लोड हो गया ।  रात अच्छी कट गयी ट्रेन में। सुबह 6:08 मिनट पर ट्रेन सराय रोहिल्ला पहुंच गयी। अब राजीव जी को फ़ोन लगा के पूछा कि कहां आना है।  उन्होंने दिलशाद गार्डन तक मेट्रो से आने का कहा । मेट्रो में 2-3 बार पहले भी जब दिल्ली आया था तो सफर कर चुका था।  बहुत साफ़ सुथरी बढ़िया गाडी है,  दिल्ली के ट्रैफिक में इससे बेहतर इससे तेज कुछ नहीं। जनता भी पूरी न्यूयॉर्क वाली फीलिंग लेती इसमें सफर करते हुए खासकर कॉलेज के छोरे छोरियां।  दिलशाद गार्डन आ गया।  मन तो किया थोड़ी देर और चलते हैं इसी में ही पर उतरना जरुरी था।  AC की ठंडी हवा खा के ठंडी आह भर कर उतर लिए अपने दोनों बैगों के साथ।  एक में कपडे थे एक में हेलमेट था।  राजीव जी से फिर फ़ोन पर बात हुई बोले  "बस पहुंच ही रहा हूँ "।  मैं मेट्रो से बाहर आके सड़क किनारे थोड़ा हाथ मुंह धो लिया और एक चाय गटक ली।  थोड़ी ही देर में राजीव जी पल्सर 150 पे प्रकट हुए।  बैग से हेलमेट निकलने पर बैग हल्का सा हो गया, पर दूसरा थोड़ा फूला हुआ था जैकेट,  थर्मल और एक गर्म लोई की वजह से जो बाइक पे राजीव जी के बैग के साथ बांधना मुश्किल भी था और अनसेफ भी। हलके वाला मेने पिट्ठू लगा लिया और दूसरा वाला राजीव जी ने फ्रंट में लगा लिया बाइक के टैंक पर और पास ही के पेट्रोल पंप पर टैंक फुल करवा लिया।  श्री मदमहेश्वर, Madmaheshwar Trek के लिए हमारा सफर शुरू हुआ।

अब तक सुबह के 8 बजे चुके थे।  बड़े शहर कभी सोते नहीं तो सुबह सुबह भी दिल्ली में ट्रैफिक मिला जो राजीव जी के अनुसार कम ही था पर मेरे जैसे छोटे शहरवासी के लिए बहुत था।  बाइक राजीव जी ही चला रहे थे।  मुरादनगर से नहर वाला रास्ता पकड़ा क्योकि वहां ट्रैफिक कम होता है। 10 बजे के करीब नाश्ते के लिए चोटीवाला रेस्टोरेंट पे गाड़ी रोकी।  इस नहर वाली सड़क पर ये इकलौता ही रेस्टोरेंट है जहां खाने की अच्छी व्यवस्था है। बाकी जगह हल्का फुल्का नाश्ता टाइप मिल सकता पर खाना नहीं।  भूख भी अब तक चमक आयी थी।  एक एक परांठा दही अचार से खाया।  परांठा बढ़िया बना था और काफी मोटा और बड़ा भी था तंदूरी पर कीमत थी 90 रुपए एक परांठे के जिसने स्वाद सा बिगाड़ दिया।  राजीव जी कहा अब यहां से आगे कई दिन सादा खाना ही मिलेगा इसलिए अभी मजे लूट लो परांठे के। परांठे निपटाने के बाद बाइक को खतौली की तरफ और दौड़ा दी । 30-40  किलोमीटर चलने के बाद ड्राइवर चेंज हुआ।  अब बाइक मेरे हाथों में थी।  बाइक के क्लच में कुछ गड़बड़ थी और बाइक स्पीड कम पकड़ रही थी पर फिर भी 60+ ही चल रही थी। मीरापुर या बिजनौर आया था शायद। शहर में एक मोड़ पर सामने से ट्रक ओवरटेक करता हुआ सारी सड़क रोके आ रहा था। बाइक तो धीरे ही थी और ट्रक देख के और धीरे कर ली थी और सड़क से नीचे भी उतार ली थी लेकिन वो वापस सड़क पर चढ़ नहीं पायी और बैलेंस बिगड़ गया।  छोटा वाला धड़ाम हो गया।  बाइक एकदम स्लो होने की वजह से कोई चोट नहीं आयी।  राजीव जी को पहले ही अंदाजा था कि नए को दिल्ली के ट्रैफिक में और पहाड़ों में बाइक चलाने देना कोई समझदारी नहीं है पर प्लेन में भी मेरे बाइक को रपटाने ने मेरी पूरी ड्राइविंग की मिट्टी पलीत कर दी ।  खैर, उन्होंने मुझे डांटा नहीं और बाइक अभी भी मैं ही चला रहा था।
Madmaheshwar Trek, Madmaheshwar Trek Distance
Madmaheshwar Trek, हरे भरे रास्ते 

कोटद्वार से पहाड़ दिखने शुरू हुए और चढ़ाई भी शुरू हो गयी ।  दोपहर 2 बजे के करीब एक छोटे से पहाड़ी ढाबे पे खाना खाया। जैसा राजीव जी ने पहले ही बता दिया था कि अब आगे के सफर में खाना सादा ही मिलेगा सेम वैसा ही एकदम सादा खाना मिला पर स्वाद अच्छा था। 50 रुपए डाइट। ढाबे पर ही एक दो फोटो खींचे। फेसबुक पर चेप भी दिए तुरंत ही। खाना खा के कुछ देर वहीं खटिया पे सुस्ताये और एक एक कटिंग चाय पी के फिर चल दिए।  आज की मंजिल श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) थी जो अभी काफी दूर थी। अब राजीव जी ने बाइक पकड़ ली और सतपुली, पाटीसैण, परसुंडाखाल होते हुए हम पौड़ी पहुंचे। शाम हो चुकी थी। पहाड़ों में वैसे भी दोपहर से शाम होते देर नहीं लगती। वहां एक एक कप चाय पी कर फिर चल पड़े श्रीनगर की तरफ।  बाइक के पीछे बैठे मेरे दिमाग में तो बस Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक ही घूम रहा था और हरे भरे पहाड़ों को देख के मन बहुत प्रसन्न था। हो भी क्यों ना पहली बार ही तो इतने पास से इतने पहाड़ देख रहा था।

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, बलखाती सड़कों पे चीड़ का साम्राज्य
चढ़ाई अब और तीखी हो गयी थी और बाइक को काफी जोर लगाना पड़ रहा था। शाम 7:30 को श्रीनगर पहुंचे। आधे अक्टूबर के बाद भी श्रीनगर में अभी सर्दी नहीं थी। थके होने के कारण ज्यादा सोच-विचार ना करते हुए बाबा काली कमली वाले की धर्मशाला में रूम ले लिया जो वहीं मेन बाजार मेन सड़क पर ही थी। बाइक भी अंदर ही पार्क हो गयी।
 बैग रूम में रखकर खाने के लिए निकलने लगे तो राजीव जी ने याद किया कि पेट्रोल अभी भरवा लेते हैं सुबह जल्दी निकलना है और सुबह पेट्रोल पंप जल्दी खुलेगा नहीं। वापस बाइक निकली और धर्मशाला के बिलकुल पास वाले सरकारी पंप पे गए। शाम के 8 बजे से भी लेट हो गयी और  सरकारी पंप तो शायद शाम 7 बजे ही बंद हो गया था।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, अलकनंदा नदी के किनारे के खेत


आगे करीब 3 किलोमीटर पर एक और पेट्रोल पंप था जो थोड़ा लेट तक खुला रहता था तो वहीं जाना पड़ा।  टैंक फिर फुल करवाया और आते समय ही खाना भी खा आये, वही सादा खाना लेकिन स्वाद, 50 रुपए प्रति व्यक्ति।  धर्मशाला में रूम के 300 रुपए लगे।  रूम काफी बड़ा था और साफ ही था। लेट बाथ अटैच। धर्मशाला अच्छी और काफी बड़ी है। रूम में आके मुंह हाथ पैर ही धोये, नहाया नहीं।  इतना थक कर ठंडे पानी से नहा कर बीमार नहीं होना था। नहाने के लिए सुबह ही सबसे अच्छा समय होता है।  देर रात को ठंडे पानी से जितना कम पंगा लो उतना ही सेहत के लिए अच्छा रहता है। थोड़ा मोबाइल चार्ज कर लिया।  मच्छरों से बचने के लिए पंखा चला लिया और कंबल की ओढ लिया। कल सुबह 6 बजे रांसी गांव (Ransi Village) से Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक के लिए निकलना था। घर पर फ़ोन से बात की और फिर थोड़ा मोबाइल चलाया। थकान की वजह से जल्दी ही नींद आ गयी।



Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-2

Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-2 

19 सितम्बर 2019 (दूसरा दिन)

Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-2

श्रीनगर से रांसी गांव और मैखंबा, Ransi Village 

पूरे ट्रेक में सुबह पहले उठने का काम राजीव जी ने ही किया तब तक मैं 10-15 मिनट और नींद खींच लेता था जो बड़ी प्यारी नींद होती है। राजीव जी 5 बजे से पहले ही उठ गए थे और मैं 5:30 बजे उठा । फ्रेश हुआ। आज नहाना जरुरी था क्योंकि अब आगे ठंड ज्यादा ही मिलनी थी और पता नहीं आगे नहाने का समय/व्यवस्था हो ना हो। नहा धो कर ठीक 6 बजे श्रीनगर से रांसी गांव, Ransi Village के लिए रवाना हो गए। सड़क अब चौड़ी और साफ़ थी अलकनंदा नदी के किनारे किनारे। बाइक अब ज्यादा रेस मांग रही थी और चल कम रही थी।  एक जगह रुक के बाइक के टायर को चेक किया तो हवा कम लगी। मौके पे थोड़ा ही आगे एक पंक्चर की दुकान मिल गयी जहां हवा चैक करवाई। कम ही थी।  टायर में हवा सही करवाई। टायर में हवा पूरी होते ही अब बाइक अब अच्छे से और काफी आराम से चल रही थी। क्लच प्लेट में कुछ गड़बड़ के बावजूद भी बाइक अब कोई दिक्कत महसूस नहीं कर रही थी और सही दौड़ रही थी । रुद्रप्रयाग पार कर चाय के लिए रुके। चाय की दुकान पर परांठे का मसाला भी तैयार था तो परांठे का भी बोल दिया।  10-15 मिनट में गर्मागर्म परांठे प्लेट में आ गए।  परांठे बहुत बढ़िया और करारे बने थे तो 2-2 आराम से खा लिए साथ ही चाय भी पी ली। मन तृप्त हो गया सुबह सुबह बढ़िया परांठे का नाश्ता कर के। 4 परांठे, 2 चाय, एक आमलेट 170 रूपये के बने।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, खूबसूरत रास्ते

अब आगे आने वाला शहर अगस्तमुनि था।  और भी छोटे बड़े गाँव आते गए और पीछे छूटते गए और चढ़ाई और खड़ी और तेज होती जा रही गई । पहले कुंड, फिर कुंड से उखीमठ, बरुआ, उनियाना होते हुए रांसी गाँव Ransi Village आया।  कुछ साल पहले तक यहीं से श्री मदमहेश्वर, Madmaheshwar Trek ट्रेक शुरू होता था पर अब सड़क 1.5 किलोमीटर और आगे तक बन चुकी है जहां एक चाय मैगी की पक्की दुकान है गाड़ियां वहां तक जाती हैं और अब सब लोग वहीं से ट्रेक शुरू करते हैं । दुकान 2 कमरों की है।  एक कमरे में चाय मैगी चलती है और साथ वाले कमरे में आगे के गावों के लोगों/दुकानों के राशन पानी की बोरियां रखी रहती हैं जिन्हें खच्चरों पे लाद के आगे तक पहुंचाया जाता है।  बाइक को सड़क के एकदम किनारे लगा दुकान पे लंच किया और जरुरी कपड़े, सामान एक एक बैग में लेकर बाकी सामान और हेलमेट वगैरा वहीं दुकान के साथ वाले कमरे में ही रख दिया। घर पर फ़ोन कर के बता दिया कि अब Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक शुरू कर रहे हैं और अब आगे शायद दो दिन तक मोबाइल की रेंज नहीं आएगी इसलिए परेशान ना हों। ट्रेक से वापस लौटकर ही बात हो पायेगी।
         
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, रांसी गांव से आगे की दुकान। यहां तक सड़क बन गयी है। 
 समय साढ़े 12 का हो गया था। आज बादल नहीं थे, मौसम साफ़ और बढ़िया धूप खिली थी लेकिन सामने ही ऊँचे ऊँचे पहाड़ दिख रहे थे जिनकी चोटियां बादलों में घिरी थी। यात्रा शुरू हुई Madmaheshwar Trek की। 
हमारे साथ ही श्रीनगर के 5-6 लड़के भी ट्रेक के लिए चले।  ट्रेक के शुरू में थोड़ी ढलान से ट्रेक शुरू हुआ। ट्रेक का रास्ता पहाड़ के पक्के पत्थरों से बना है और काफी दूर तक तो सीमेंट पिला कर अच्छे से लेवल किया हुआ है। खूब हरियाली, ठंडी ठंडी हवा, ऊँचे ऊँचे पेड़ और किनारे बड़े बड़े पत्थरों के साथ साथ पगडण्डी चलती है। दूसरी तरफ घाटी में पहाड़ से बह कर आता पानी था जो नदी का आकार ले रहा था। इस ट्रेक पर रास्ता नहीं भटक सकते क्योंकि रास्ता सिर्फ एक ही है और वो भी पक्का है। रास्ते की मरम्मत अब भी एक दो जगह चल रही थी। थोड़ी थोड़ी दूरी पर ही गाँव आते रहते हैं तो मन भी लगा रहता है और हिम्मत भी बनी रहती है।  मेरा ये पहाड़ का पहला ही अनुभव था।  मैं बहुत ही खुश था और अपने को किस्मतवाला मान रहा था कि मैं ये Madmaheshwar Trek कर रहा हूं। थोड़ी देर चलने के बाद एक झरना आया और फिर एक पुल भी आया।  बहुत सुंदर झरना था।  कई फोटो लिए वहां।   
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, ठंडे पानी का झरना
पुल के साथ भी फोटो खींचे। पानी बोतल में भर कर ही चले थे रांसी से तो बोतल फुल थी। थोड़ा पी जरूर लिया झरने का ठंडा ठंडा पानी। एक कॉफ़ी वाली टॉफी खायी जिसमें मशीन की गलती से एक की जगह दो टॉफी पैक हो गयी थी।  किसी चीज़ की खरीद पर साथ में कुछ एक्स्ट्रा फ्री में मिल जाये तो भला किसे अच्छा नहीं लगेगा।  राजीव जी टॉफी खाते नहीं तो दोनों मैंने ही खायी। और आगे चलते गए तो मुझे एक जगह रंगीन चश्मा गिरा हुआ मिला। किसी का गिर गया होगा शायद। देते किसे वहां तो कोई था भी नहीं।  सस्ता सा थोड़ा पुराना ही था। चश्मा लगा एक दो सेल्फी खींची।  मैं सोचूं ये तो गुडलक ही गुडलक हो रहा आज तो। अपुन खुस।
         
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, हरियाली और रास्ता
  आगे चलते गए।  5-6 किलोमीटर बाद पहला गांव आया गोंडार। गोंडार में चाय पी और थोड़ी देर कमर सीधी की। राजीव जी चाय के साथ साथ Madmaheshwar Trek से आगे नंदीकुंड-घीयाविनायक और कल्पेश्वर ट्रेक के लिए दुकान वाले से जानकारी जुटा रहे थे जो उन्हें इस साल बर्फ़बारी की वजह से रद्द करना पड़ा था और अगले साल के लिए टल गया था। चाय पी कर वहां से आगे बंतोली के लिए चल पड़े। बंतोली से आगे आती है एकदम खड़ी चढ़ाई जो अच्छे अच्छों का दम निकाल देती है जो लगभग आगे पूरे ट्रेक तक चलती है। रास्ते में बहुत कम ही लोग मिल रहे थे।  ज्यादातर बंगाली ही थे।  राजीव जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि अक्टूबर में कहीं भी टूरिस्ट स्पॉट या ट्रेक पे चले जाओ बंगाली ही ज्यादा मिलेंगे क्योंकि इनको इस समय (दुर्गापूजा के समय) काफी छुट्टी मिल जाती है। हम सब को पीछे छोड़ नॉनस्टॉप चल रहे थे। रेस्ट एक मिनट का ही लेते थे वो भी खड़े खड़े।  मैं तो जगह देख कर बैठ ही जाता था।  ही ही ही।

बंतोली से चले अब काफी समय हो गया था। चढ़ाई से पैर थक गए थे और शरीर भी पसीना पसीना हो रहा था।  एक जगह मोड़ पर 5-6 लोहे के बेंच का टीनशेड आया।  पास ही पानी की टोंटी भी थी, वहीं बैग रख लेट गया। राजीव जी भी सामने की बेंच पर लेट गए। वहां 4-5 लड़के पहले से बैठे थे। पूछने पर पता चला कि वो Madmaheshwar Trek कर आये हैं और नीचे लौट रहे हैं।  हमारे लेटे लेटे ही वो नीचे लौट गए।  दो मिनट लेट कर मोबाइल निकल लिया जेब से।  पसीने की वजह से फिंगरप्रिंट काम नहीं कर रहा था तो सोचा हाथ धो आता हूं । मोबाइल बेंच पे रख हाथ मुंह धो आया।  आकर बैग से गमछा निकल हाथ मुंह पोंछ लिए।  राजीव जी भी उठकर बैठ गए और चलने के लिए तैयार थे तो मैं भी बैग उठाकर चल दिया और मोबाइल भाई साहब (हाय मेरा Mobile) वहीं बेंच पर आराम करता रह गया।  आधे घंटे में खडरा के करीब पहुंचे तो फोटो के लिए जेब पे हाथ मारा तो मोबाइल गायब। मेरी तो सांस अटक गई । चेहरे का सारा रंग उड़ गया। रसाला जेब से कहां गया, जेब की तो जिप भी बंद है।

एक सेकंड भी नहीं लगा और याद आ गया कि वहीं लोहे की बेंच पर रह गया। तुरंत बैग राजीव जी के पास छोड़ दौड़ लगायी नीचे को टीनशेड की तरफ।  रास्ते में दो बंगाली परिवार मिले, श्रीनगर वाले लड़के भी मिले सबसे पूछा कि मेरा मोबाइल छूट गया था टीनशेड में मिला किसी को।  सबने कहा हमनें तो नहीं देखा ना ही हम रुके वहां।  थकान तो काफी थी पर मोबाइल सबसे जरुरी था तो 5 मिनट में ही टीनशेड तक पहुंच गया।  देखा तो मोबाइल गायब। दिल बैठ गया और मैं भी। ये क्या अभी 15 दिन पहले ही तो खर्चा कर के लिया था अभी तो सही से चलाना भी नहीं सीखा था और फ़ोन के भरोसे दूसरा कैमरा भी नहीं ले गया था।  मतलब चौतरफा मार हो गयी ये तो। फ़ोन भी गया, एक्के दुक्के फोटो भी गए और आगे अब फोटो आएंगे भी नहीं।  बंटाधार। सब कुछ इतना अच्छा चल रहा था, दो गुडलक साइन भी मिले फिर भी मोबाइल गायब।  ऐसा कैसे हो गया ?  मैं तो कभी ऐसे कोई चीज़ नहीं भूला आजतक।  सारा मज़ा किरकिरा हो गया।  मूड ऑफ हो गया। रोने को मन कर रहा था पर बड़ी ही मुश्किल से दिल पर पत्थर रख टीनशेड से खाली हाथ वापस मुड़ा। 10-15 मिनट फिर ऊपर की तरफ दौड़ लगायी और खडरा पहुंचा राजीव जी के पास।  राजीव जी बोले मिला मोबाइल ? मैंने कहा नहीं मिला। राजीव जी ने सांत्वना दी के कोई बात नहीं मेरे भी दो मोबाइल खो चुके हैं।  जिंदगी है कुछ न कुछ नफा नुकसान चलता ही रहता है।  बात ज्यादा दिल पे मत लो। चाय पीओ थोड़ा आराम करो।

थोड़ी देर वहीं आराम किया। हल्की हल्की बारिश शुरू हो गयी थी।  कुछ देर बारिश रुकने का इंतजार किया ।  यहीं खडरा में Madmaheshwar Trek पे जाने वालों का रजिस्ट्रेशन होता है। हमने भी रजिस्ट्रेशन करवाया। अब बारिश रुक गयी थी तो बिना मोबाइल भारी मन से आगे के ट्रेक पे रवाना हुए। चढ़ाई पूरा जोर लगवा रही थी। हालत ख़राब होने लगी थी सुबह से शाम जो होने को आयी थी चलते चलते और मोबाइल खोने का झटका अलग से था। चलते चलते यही फाइनल हुआ कि आगे जो भी पहला गांव या होमस्टे आएगा वहीं रात रुक जायेंगे। थोड़ा थोड़ा अंधेरा होने लगा था। राजीव जी ने टॉर्च जला ली।  चले जा रहे थे चले जा रहे थे पर कोई गांव या होमस्टे नहीं दिखा।  आखिर में 7:30 बजने को आये तो एक मैखंबा नाम की जगह आयी।  रास्ते पर ही बोर्ड लगा था गेस्ट हाउस का। बाहर घुप्प अंधेरा और ठंड भी अच्छी खासी हो गयी थी। बाहर कोई लाइट नहीं जल रही थी।  राजीव जी ने पास जाकर दो तीन आवाज लगायी तो एक औरत बाहर आयी टॉर्च लेकर।  खाने और रात रुकने का पूछा तो उसने कहा कि कमरा खाली ही है, आपके रुकने की व्यवस्था हो जाएगी । कमरे में बैग नीचे रख मैं तो तुरंत बैड पे रखी रजाई में घुस गया। एक कप चाय पी तो थोड़ी शरीर में गर्मी आयी। यहां ऊपर हवा बहुत ही ठंडी और तेज थी।  जैकेट शाम को ही पहन लिया था तो सर्दी से बचाव रहा था अब तक।  रजाई में बैठे बैठे ही चाय पी। उसने बताया कि अभी थोड़ी देर पहले ही उसने एक (Leopard) तेंदुए को देखा है ऊपर पहाड़ की तरफ। यहां ऊपर पहाड़ पे रात को अंधेरा होते ही जंगली जानवर घूमना शुरू हो जाते हैं। आपको शाम होते ही कहीं रुक जाना चाहिए था। इतना अंधेरे में नहीं चलना चाहिए था। हमारी तो वैसे ही हालत ख़राब थी, तेंदुए की बात सुन कर और ख़राब हो गयी। खडरा के बाद एक और गांव था नानूचट्टी, पर हमें वो अंधेरे में और रास्ते से ऊपर की तरफ होने के कारण दिखा ही नहीं और हम आगे निकल गए।  लाइट यहां ऊपर पहाड़ों में घर के बाहर कोई जलाता है नहीं। कमरे में सौर ऊर्जा वाले एक दो बल्ब होते हैं बस। खाने का बोल कर फिर रजाई में घुस गया।  मोबाइल तो था नहीं तो कुछ करने को था भी नहीं।  थोड़ी देर राजीव जी से बात करता रहा और वो मोबाइल चलाते चलाते जवाब देते रहे।  एक घंटे बाद खाना आया।  खाने का बिलकुल मन नहीं था फिर भी दाल रोटी जो आयी खायी।  ताजी रोटी हमारे कमरे तक आते आते ठंडी सी हो चुकी थी। खाना बेस्वाद ही लगा शायद ऊंचाई ने असर दिखाना शुरू कर दिया था। 600 रूपये रात रुकने और खाने के लगे। राजीव जी ने बताया यहां ऊपर पहाड़ों में भूख प्यास कम ही लगती है पर खाना खाना ही चाहिए, पानी भी दिन भर में दो बोतल तो कम से कम पी ही लेना चाहये नहीं तो तबियत बिगड़ जाती है।  खाना खाया और मोबाइल को याद करता करता रजाई ओढ़ के सो गया।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, चश्मे के साथ सेल्फी


Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, ये आया लोहे का पुल

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, फोटो सेशन चालू है

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, ये छोटे वाला पुल है
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, साथ साथ नीचे बहती नदी 

Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, राजीव जी चलने में खूब तेज हैं
























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