Friday, November 29, 2019

Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-3

Madmaheshwar Trekमदमहेश्वर ट्रेक-3

20 सितम्बर 2019 (तीसरा दिन)


Madmaheshwar Trek, मदमहेश्वर ट्रेक-3

राजीव जी कल की तरह आज भी जल्दी ही उठ गए, मैं बाद में उठा।  उठकर पानी पिया। अब घर तो है नहीं के बिस्तर पर ही चाय मिल जाये। चाय बाद में मिलेगी। बाहर निकलने पर चिल्ड हवा ने स्वागत किया।  ठंड से रोंगटे खड़े हो गए। काफी तेज ठंडी हवा चल रही थी। जैसे तैसे ऐसी ठंड में फ्रेश हो आया। रहने और खाने के पैसे दे हम 6 बजे वहां से चल पड़े। चाय अभी नहीं बाद में।  सुबह सुबह पहाड़ और पेड़ों की हरियाली बहुत ही सुंदर लग रही थी।  पंछी भी चहचहा रहे थे। अजीब अजीब सी आवाजें बना रहे थे। वाह। इट इज प्योर नेचर। सब कुछ बहुत सुंदर लग रहा था। शहर तो कब का पीछे छूट गए थे।  कोई गाड़ियों का या और किसी चीज़ का शोर नहीं। सिर्फ हवा, पेड़ और पंछियों की ही आवाज थी।  रात को नींद अच्छी नहीं आयी थी शायद ऊंचाई की वजह से, नहीं तो थके तो बहुत थे इसलिए नींद अच्छी आनी चाहिए थी। सुबह सुबह धीरे धीरे ही चले जा रहे थे। शरीर अभी बना नहीं था।  घंटे भर चल कर कूनचट्टी पहुंचे।  यहीं से रात को टॉर्च की रौशनी आ रही थी।  अगर मैखंबा रुकने की जगह ना होती या कमरे में पहले से ही लोग रुके हुए होते तो शायद हमें भी यहीं कूनचट्टी आकर ही रुकना पड़ता।  कूनचट्टी पे दुकान वाले को चाय का बोल दिया और उसे रात की तेंदुए वाली बात बतायी जो उस औरत ने हमें बताई थी। दुकानवाला बोला उस औरत ने ऐसे ही बोल दिया होगा उसने आपको डराने के लिए और आप रात वहीं पे रुक जाएं इसलिए।  जंगली जानवरों यहां है तो सही पर जब तक यात्रा चलती रहती है वो पगडण्डी से दूर ही रहते हैं। जब यात्रा बंद हो जाती है और यहां के सब लोग नीचे चले जाते हैं उसके बाद यहां उनका ही राज होता है। चाय पी के थोड़ी देर आराम किया और फिर चल पड़े अपने रास्ते।

अब मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) ज्यादा दूर नहीं था। अब फिर से जंगल जैसा रास्ता शुरू हो गया था।  घने पेड़ों से छन कर आती धूप बहुत सुहानी लग रही थी।  चलते चलते बातें करते करते सुबह के करीब 10:30  बजे हम मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Temple) के सामने थे।  काफी बड़े मैदान में बना है मंदिर। काफी जगह पर तो दुकान और समिति का भवन बना हुआ है।

मदमहेश्वर मंदिर पंच केदार (Panch Kedar) में चौथे नंबर पर आता है। पंच केदार में प्रथम है केदारनाथ मंदिर, दूसरे क्रम पर तुंगनाथ, तीसरे क्रम पर रुद्रनाथ मंदिर, चौथे क्रम पर मदमहेश्वर मंदिर, और पांचवे क्रम पर कल्पेश्वर मंदिर है। मदमहेश्वर मंदिर की (Madmaheshwar Height) समुद्रतल से ऊंचाई 3490 मीटर है और बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple Trek) की ऊंचाई 4267 मीटर है। रांसी गांव (Ransi Village) के आगे जहां तक सड़क बन गयी है वहां से मदमहेश्वर मंदिर (Madmaheshwar Trek Distance) तक की दूरी करीब 17 किलोमीटर है और मदमहेश्वर से बूढ़ा मदमहेश्वर की दूरी करीब 3 किलोमीटर है।

बहुत ही सुन्दर है बाबा का मंदिर। आज तक सिर्फ फोटो में ही देखा था, आज मदमहेश्वर ट्रेक कर के असली में दर्शन हुए हैं। कुछ सेकंड वहीं खड़े खड़े मंदिर और आसपास बिखरी खूबसूरती को निहारा।  मंदिर के पीछे और दायीं तरफ खूब ऊंचे ऊंचे पहाड़ हैं।  मंदिर के बायीं ओर करीब 3 किलोमीटर का ट्रेक है बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर के लिए (Buda Madmaheshwar Temple)। नीचे मंदिर के पास ही समिति की धर्मशाला बनी है और भी दुकानें, ढाबे बने हैं जहां काफी लोगों की खाने रुकने की व्यवस्था हो सकती है। बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple) बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर के लिए थोड़ी दूर तक पगडण्डी पक्की बनी है। आगे फिर घास पे ही थोड़ी सी चढ़ाई है। कोई परेशानी नहीं आती।

मंदिर दिखते ही दूर से ही श्री मदमहेश्वर को प्रणाम किया।  बैग चाय की दुकान की पे रख पहले हम बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple Trek) के लिए चल दिए।  हम बिना पगडण्डी ही चले शुरू में फिर आगे जाकर कच्ची पगडण्डी पकड़ ली जो ऊपर की तरफ जा रही थी।  सीधा बूढ़ा मदमहेश्वर के बराबर जा के ही निकले।  छोटा सा पत्थरों का बना मंदिर बना है।  यहां शिव जी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।  बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर (Buda Madmaheshwar Temple Trek) के मंदिर के मैदान से बर्फीले पहाड़ों की चोटियां साफ़ दिखाई देती हैं जैसे हाथ बढ़ा के छू लो। ऊपर पहाड़ों पर बादल बनना शुरू हो चुके थे लेकिन फिर भी कई बर्फीली चोटियां दिख ही गयीं।  यहां से चौखम्बा नजदीक से दिखती है और बहुत ही बड़ी दिखती है।  मंदिर के पास ही दो छोटे छोटे पानी के ताल हैं। गहरे बिलकुल भी नहीं।  इसी पानी में सुबह के समय चौखम्बा पर्वत की बहुत ही सुन्दर परछाई बनती है जो बहुत लाज़वाब दिखती है, बस हवा ना चल रही हो और पानी हिल ना रहा हो।  बाबा के दर्शन किये पूरी श्रध्दा के साथ और आस पास काफी फोटो खींचे राजीव जी के फ़ोन से लेकिन वो बाद में किसी वजह से फ़ोन से डिलीट हो गए। बहुत ही सुन्दर नज़ारा दिखता यहां से मन भरता ही नहीं बस बैठे बैठे देखते ही रहो।  दर्शन कर आधा पौन घंटा वहीं बिता नीचे को लौट आये। नीचे आते समय आराम से आये। ढलान ही थी तो कोई परेशानी नहीं आयी। अब नीचे आकर बाबा मदमहेश्वर के दर्शन किये और राजीव जी ने पुजारी जी से मंदिर के बारे में, पूजा अर्चना के बारे में जानकारी ली और अपनी श्रद्धा से समिति की पर्ची कटवाई।  चाय वाले के पास जाकर पहले खाना ही खाया और कुछ देर धूप सेक वहीं पास के रूम में लेट गए। खाने की एक थाली के 130 रुपए लगे।  चाय यहां 15 की थी। जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है सब चीज़ों की कीमत भी बढ़ती जाती है। समय अब बारह से आगे का हो चुका था और हम बैग उठा नीचे रांसी गांव (Ransi Village) की तरफ वापस चल दिए।

अब लगभग सारा रास्ता उतराई वाला ही थी।  फिर से कूनचट्टी ही रुके और दोपहर की चाय यहां पी।  रात वाला मैखंबा फिर आया और गया।  मैखंबा से निकलते ही हल्की हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गयी। कुछ देर तो ऐसे ही काम चलाया फिर बैग से चादर निकाल ओढ़ ही ली।  बारिश अब छोटे छोटे ओलों में बदल गयी थी और फुल बरस रही थी।  वहीं रास्ते के किनारे एक बड़े से पत्थर के निचे बैठ गए।  थोड़ा भीग भी गए थे। बारिश से इंद्रधनुष के भी दर्शन हुए। सामने के पहाड़ पर भी होती बारिश देखते रहे।  बहुत बढ़िया नज़ारा था। पौन घंटे बाद बारिश कम हुई तो फिर से चल पड़े।  रास्ता अब फिसलन वाला हो गया था और कहीं कहीं रास्ते पे मिट्टी बह के आ गयी थी।  अब सीधे खडरा आकर ही रुके। मैं यहीं से निचे भागा था मोबाइल ढूंढने जो मिला नहीं। मदमहेश्वर से लौटते समय खडरा तक हमारे साथ आये डॉगी को मैंने वहीं बिस्कुट खिलाये जो वो बड़े मज़े से कुर्र कुर्र कर के खा गया।  उसको बिस्कुट खाता देख मन में बहुत संतोष हुआ।  उसका एक साथी डॉगी और आ गया उसे भी एक बिस्कुट का पैकेट खिलाया।  कुछ देर आराम कर चाय पी के फिर चले तो वो जगह आयी जहां मैं अपना मोबाइल भूला था।  मन फिर भर आया। अफ़सोस। अब क्या हो सकता था। फिर चले बंतोली गांव पार कर के गोंडार पहुंचे। अब करीब एक घंटे से थोड़ा ही ज्यादा का रास्ता बचा था और हम अंधेरा होते ही रांसी पहुंच सकते थे लेकिन वहीं गोंडार में ही रुकने का पक्का किया।  चाय पी और रूम ले लिया।  हमारा रूम होटल के नीचे ही था। अच्छा साफ़ रूम था।  राजीव जी गरम पानी ले के नहा लिए।  मेरा आज अब शाम को मन नहीं था नहाने का लेकिन कल का सारा दिन मोटरसाइकल पर चलना था तो कहीं नहाना नहीं हो पाता इसलिए मैं भी नहा ही लिया।  कहावत भी है के आदमी खा के पछताता है लेकिन नहा के नहीं।  नहाते ही थकान और बारिश में भीगने की ठंड चली गयी। अब खाने की बारी थी।  होटल में चूल्हे के पास बैठ आराम से गरम गरम रोटियां खायीं।  दाल सब्जी भी अच्छी बनी थी।  होटलवाले ने बड़े प्यार और आदर से खाना खिलाया। कई दिन बाद भरपेट भोजन किया।  रूम पे आकर छोटी लाइट जला के सोने की तैयारी ही थी कि मुझे राजीव जी सिराहने कुछ बड़ा मकड़ी जैसा दिखा। हल्की सी लाइट में काली मकड़ी मुश्किल से ही दिख रही थी ।  तुरंत राजीव जी को हाथ पकड़ कर अपनी तरफ किया और मकड़ी दिखाई।  बड़ी लाइट जलाई तो ये बड़ी मकड़ी।  मुझे बहुत घिन आती है मकड़ी से। राजीव जी से कहा आप मारो सैंडल से इसको अब।  राजीव जी- ना।  मुझसे ना होगा ये।  कांपते हाथों से हिम्मत जुटा कर के सैंडल मार मकड़ी को चित्त किया और उसका परलोक का टिकट काटा। राजीव जी के मोबाइल की लाइट जला कर बेड के पीछे चेक किया।  मकड़ी की डेडबॉडी पड़ी थी।  कुछ तसल्ली हुई कि जान बची। मैं तो बहुत डर गया था।  पता नहीं रात को हमें खा जाती तो। मेरे तो पैर के ऊपर से भी निकल जाती तो मुझे तो बुखार चढ़ना पक्का ही था।  डरते डरते लाइट बुझा कर डरा डरा सा मैं सो गया।
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, नन्हा चीड़ का पेड़


Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, गांव अब पास ही है 
Madmaheshwar Trek, Ransi Village
Madmaheshwar Trek, रास्ते में खिले फूल देखकर आपकी सारी थकान छू हो जाती है। 

Madmaheshwar Trek, Ransi Vilage
Madmaheshwar Trek, सारा ट्रेक पक्का बना है। कोई परेशानी नहीं। 



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