Friday, November 29, 2019

Kartik Swami Temple । कार्तिक स्वामी मंदिर ।

Kartik Swami Temple । कार्तिक स्वामी मंदिर । 

21/10/2019

Kartik Swami Temple । कार्तिक स्वामी मंदिर ।

 
कार्तिकस्वामी मंदिर रुद्रप्रयाग जिले का एक पवित्र धार्मिक स्थान और पर्यटक स्थल है।  रुद्रप्रयाग-पोखरी मार्ग से रुद्रप्रयाग से कार्तिकस्वामी मंदिर की दूरी 38 किलोमीटर है। कार्तिकस्वामी मंदिर की ऊंचाई समुद्रतल से 3050 मीटर (10006 फीट) है और मंदिर साल के बारह महीने खुला रहता है। कनकचोरी की समुद्रतल से ऊंचाई 2800 मीटर है।  यह करीब 3 किलोमीटर का आसान सा ट्रैक है जिसमें आप केवल 250 मीटर की ऊंचाई और प्राप्त करते हैं जो इसे एक आसान श्रेणी का ट्रैक बनाता है।  जैसे जैसे आप ट्रैक पर चलते जाते हैं हिमालय पर्वतश्रृंखला के सुंदर दृश्य आपका मन मोह लेते हैं।  मंदिर से आपको मध्य हिमालय के दर्शन होते हैं जिसमें तीन तरफ हिमालय की चोटियां और चौथी तरफ मैदानी इलाका दिखाई पड़ता है।  यहां से आपको चौखम्बा, केदारनाथ, मेरु-सुमेरु, नीलकंठ, द्रोणागिरी, नंदाघुंटी, त्रिशूल पर्वत, नंदादेवी पर्वत समूह, थलयसागर, और बंदरपूंछ की चोटियां दिखती हैं जिनकी पहचान अनुभवी ट्रैकर ही कर पाते हैं।  एक लोकल गाइड के अनुसार आप एक साफ़ दिन में यहां से करीब 300 छोटी बड़ी चोटियां देख सकते हैं।


Kartik Swami Temple

एक बार भगवान शिव एक बार अपने दोनों पुत्रों (कार्तिकेय जी और गणेश जी) की परीक्षा लेने के लिए उन्हें कहा कि वे पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर आएं और जो सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर यहां आएगा उसे वह माता पिता की पूजा करने करने का प्रथम अवसर प्राप्त करेगा।  श्री कार्तिकेय जी अपने वाहन मयूर से ब्रह्मांड की परिक्रमा को चले वहीं गणेश जी ने अपने माता पिता की ही परिक्रमा कर (श्री गणेश जी के लिए उनके माता पिता ही उनका ब्रह्मांड थे) प्रतियोगिता जीत ली जिससे कार्तिकेय जी क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने शरीर का सारा मांस माता पार्वती को और सारी हड्डियां पिता शिव को दे दीं जो अभी भी मंदिर में मौजूद बताते हैं और भक्त उनकी पूजा करते हैं।

उखीमठ से आगे:-  उखीमठ से देओरीया ताल भी नज़दीक ही था परन्तु उसे अगली बार के लिए रख दिया और कार्तिकस्वामी मंदिर/ट्रेक चलने का निर्णय लिया गया।  उखीमठ से कुंड, भीरी, और चन्दरनगर होते हुए मोहनखाल पहुंचे।  वहीं रुक एक होटल पर खाना खाया और एक बड़ा बिस्कुट का पैकेट ले लिया कि कहीं ट्रेक पर भूख लगी तो ये काम आएगा । पानी की दो बोतल पहले से ही बैग में टंगी थी। मोहनखाल से चल कनकचोरी पहुंचे।  उखीमठ से कनकचोरी तक करीब ढाई घंटे का समय लगा। यह एक छोटा सा गांव है। यहीं से कार्तिक स्वामी मंदिर का ट्रेक शुरू होता है। यहीं एक चाय की दुकान पर बाइक खड़ी की और बैग दुकान में रख  दिए।  बैग रखने के उसने कोई पैसे नहीं लिए।  मंदिर चलने से पहले दुकान पे एक एक चाय पी।  दुकान वाले की भी तो कुछ बिक्री करवानी ही थी हमारे बैग जो रखे थे वहां। चाय के कप का साइज काफी बड़ा था और चाय भी अच्छी बनी थी।  घड़ी के कांटे दोपहर का एक बजा रहे थे। सवा एक बजे ट्रेक शुरू किया।

शुरु में ट्रेक एक घने पार्क की पगडण्डी का एहसास कराता है।  धीरे धीरे जंगल थोड़ा सा घना हो जाता है और पगडण्डी पेड़ों की छांव में चलती जाती है।  थोड़ा सा जंगल और घने पेड़ों के शुरुआती रास्ते के अलावा सारा ही रास्ता पक्का और अच्छा बना हुआ है। करीब एक घंटे में आप धार पर पहुँच जाते हैं जहां से आस पास का इलाका, दूर तक फैला मैदानी इलाका और हरे भरे पहाड़ और घाटियां दिखने लगती हैं।  अब यहां से ट्रेक धार (दोनों तरफ पहाड़ी की ढलान और पर्वत पर जो थोड़ी समतल जगह हो जिस पर चला जा सके पहाड़ के ऊपर ऊपर) पर ही चलता है पक्की पगडण्डी पे।  पगडण्डी थोड़ा U बेंड लेती है तो हम शॉर्टकट के चक्कर में एक कच्ची पगडण्डी पे चल पड़े जो हमें सीधी मंदिर तक जाती लग रही थी।  हमें क्या पता था के हमारा शॉर्टकट लोंगकट बन जायेगा और आगे और नई मुसीबत आएगी ।

कच्ची पगडण्डी धार के बराबर निचे निचे चल रही थी तो हम आश्वस्थ थे कि हम सही दिशा में चल रहे हैं और कहीं आगे रास्ता ना मिला तो थोड़ा वापस आकर पक्के रास्ते हो जायेंगे।  चलते रहे चलते रहे।  मंदिर से थोड़ा पहले बने संतों का आश्रम और मंदिर समिति भवन के पास चल रहे जनरेटर की आवाज आनी शुरू हुई और आगे बढ़ने के साथ ही धीरे धीरे कम भी होने लगी लेकिन मंदिर अभी भी साफ़ सामने ऊपर ही दिख रहा था तो हम चलते रहे। पगडण्डी छोटी होने लगी थी और एक जगह लकड़ी के लट्ठ से बंद भी की गयी थी।  हम वो भी पार कर गए और एक नई छोटी सी पगडंडी और पकड़ फिर चलते रहे।  अब हम ऐसी जगह पर थे जो मंदिर से करीब 150 फीट नीचे थी और ऊपर कोई रास्ता नहीं जा रहा था। एकदम सपाट खड़ी चढ़ाई, सिर्फ बड़े बड़े पत्थरों में से पानी के कटाव से थोड़ी सी जगह बनी हुई थी जहां से कोई चढ़ने की कोशिश ही कर सकता था बाकी तो रॉक क्लाइम्बिंग वाला भी उन सीधे खड़े पत्थरों पे बिना रस्सी नहीं चढ़ पाए। अब यहीं से वापस लौट जाना चाहिए था और वापस पक्की पगडण्डी पकड़नी थी लेकिन हम वापस लौटने में समय खराब नहीं करना चाहते थे और सीधी चढ़ाई चढने की एक ट्राई करना चाहते थे।  परेशानी यह थी की अगर आधे या आधे से ज्यादा खड़ी चढ़ाई चढ़ने पर आगे कहीं और बड़ा पत्थर आया और वो पार ना हुआ तो उस जगह से लौटना बहुत मुश्किल होगा और कोई ना कोई चोट लगना तय था और ज्यादा फिसल गए तो सीधा पत्थरों पर गिरते गिरते आएंगे और प्राण-पखेरू यहीं घाटी में ही उड़ जायेंगे।  पत्थरों के किनारे मिट्टी में उगी सुखी सी घास के अलावा कुछ नहीं था जिसे पकड़ हम ऊपर चढ़ सकें और पत्थर बहुत बड़े बड़े थे आठ-आठ दस-दस एकदम फुट चिकने सपाट सीधे खड़े। मेरा कद छ फुट से ज्यादा है तो मैंने आगे थोड़ी दूर तक चढ़ कर देखने की कोशिस की जो कामयाब रही और राजीव जी को भी आने का रास्ता बताता हुआ आगे चढ़ने लगा। घास पकड़ पकड़ कर और पैर जमा जमा कर आगे और ऊपर चढ़ते जा रहे थे।  हिम्मत और कोशिश रंग ला रही थी लेकिन अब नीचे देखते ही जी घबराने लगा था कि अगर कहीं आगे का रास्ता ना मिला तो गए काम से।  आधे से अधिक रास्ता तय हो चुका था।  वहीं रुक थोड़ा सा सुस्ताये और आगे के संभावित रास्ते को खोजने लगे। यहां भी हमारा भाग्य बली था और ऊपर मंदिर पर चल रहे ट्रेक और प्लेटफार्म की मरम्मत में लगे दो मजदूर हमारी तरफ से दिख रही मंदिर परिसर की दीवार पर सुस्ताने बैठे दिखे। हमारे लिए वो लोग वो उम्मीद की किरण थे जिसे हर मुसीबत में फंसा व्यक्ति खोजता है।  हम दोनों ने हाथ हिलाकर और चिल्ला चिल्ला कर उन्हें Hello Hello Hi कहा और रास्ता पूछा।  उन्होंने भी हाथ हिलाए और हमें चट्टान के किनारे किनारे आने का कहा।  अब हिम्मत और बढ़ी तो थोड़ा और ऊपर चढ़ते गए।  कहीं कहीं पैरों के नीचे से फिसलते पत्थर जान निकाल देते थे।  थोड़ी देर बाद हम मंदिर से करीब तीस फुट नजदीक तक पहुंच चुके थे। आगे का रास्ता अब भी कुछ स्पष्ट नहीं था।  एक बार फिर उनको आवाज देने पर उन मजदूरों में से एक लड़का वापस लौट के दीवार की तरफ आया। हमने उससे पूछा के अब यहां से पत्थरों के किस तरफ से आना सही रहेगा। उसने हमें थोड़ा किनारे की तरफ से आने को कहा।  अब यहां राजीव जी ने अपनी जादुई शक्तियों का प्रयोग कर उस भले मानुष को कहा कि "वहां बैठे ही हो यहां नीचे आके ही थोड़ा रास्ता बता दो"। लड़का तुरंत दीवार से खाई की तरफ हमें रास्ता बताने और सहायता के लिए नीचे आ गया और उस लड़के की मदद से ही हम ऊपर चढ़ मंदिर की दीवार फांद कर मंदिर परिसर में पहुंच गए। ऊपर पहुंच कर भगवान को धन्यवाद दिया जिसने उस लड़के के रूप में हमें उस मुसीबत की खाई से निकला।  राजीव जी ने भी उस लड़के को धन्यवाद दिया और कुछ माया भी भेंट की। हमें तो लगा जैसे खुद श्री कार्तिकस्वामी जी ने ही हमें उस लड़के के रूप में दर्शन दिए और हमारी मदद की। उसके साथ कुछ फोटो भी लिए और एक बार फिर उसे हमारी सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया।

ऊपर आकर कुछ देर उखड़ी सांसो और तेजी से धड़क रहे दिल को आराम दिया और सामान्य हुए। ऊपर मंदिर पर अच्छी हवा चल रही थी और शाम भी होने लगी थी।  एक तरफ मैदानी इलाका दिख रहा था तो तीन तरफ हिमालय की चोटियां चमक रहीं थी।  बहुत बहुत सुंदर दृश्य था जो बहुत मेहनत के बाद देखने को मिला था।

अब मंदिर में दर्शन किये और पीले चंदन का तिलक भी लगाया।  मंदिर अच्छा बना हुआ है। मंदिर के प्रांगण शुरू होने पर यहां खूब छोटी बड़ी घंटिया टंगी हैं जो बहुत सुंदर लगती हैं। यहां से दिख रहे मध्य हिमालय को जी भर के आंखों और दिल में भरा और कुछ फोटो भी लिए। शाम के समय बादल ना होते तो और अच्छे से हिमालय के दर्शन होते। वैसे भी सुबह और शाम के समय ही आप हिमालय को उसके सबसे सुन्दरतम रूप में देख सकते हैं बाकी समय बादल आपको हिमालय के पूरे दर्शन नहीं होने देते। मंदिर पहुंचे आधा घंटे से ज्यादा का समय हो चुका था।  सूर्यदेव भी अब अपने घर लौटने की राह चलना शुरू कर दिए थे और शाम होने लगी थी इसलिए हमने भी एक बार फिर कार्तिकस्वामी जी को याद और प्रणाम किया और इस बार सही और पक्के रास्ते से लौटने का निश्चय किया।

अब रास्ता पक्का और हल्की ढलान का था।  आराम से चले जा रहे थे और सोच रहे थे के अगर इसी रास्ते से आते तो कितनी आसानी से मंदिर तक पहुंच जाते।  थोड़ी देर बाद मंदिर की समिति का का भवन और संतों के रहने के कमरे आये।  एक छोटा सा पानी का कुंड भी बना हुआ था।  बहुत ही सुंदर।  यहां से भी बहुत सुंदर दृश्य उपस्थित होता है और आप यहां भी रुक कर कुछ फोटो ले सकते है। पीने के पानी की भी व्यवस्था है। कुछ फोटो लिए और पानी के दो घूंट पी नीचे चल दिए।  लौटते समय हमें वो कच्ची पगडंडी दिखी जिस पे चल हम आगे बंद रास्ते और खड़ी चट्टानों में फंस गए थे। एक दूसरे को देख हम अपनी हंसी रोक नहीं पाए और अपनी ही मूर्खता हंसी आयी।  माहौल कुछ हल्का हुआ तो कुछ गीत गुनगुनाते  हुए नीचे चल दिए ।  गानों से याद आया कि  मोबाइल में भी कुछ गाना बजाया जाए।  मैने अपने मोबाइल में एक पंजाबी गाना बजाया और थोड़ी सी आवाज बढ़ा दी।  आवाज बढ़ाते ही हमारे से करीब 20 फुट नीचे पेड़ों में से कोई जानवर घुर्र घुर्र की आवाज करता करता हुआ तेजी से पीछे घने जंगल की तरफ भाग गया।  केवल एक झलक ही दिख पायी। पता नहीं क्या था कोई जंगली सुवर, हिरन, या भालू। बन्दर भी हमें उस पूरे रास्ते कोई नहीं दिखा। गांव का कोई कुत्ता भी नहीं हो सकता क्योंकि वो जरूर दुबारा भोंकता और इतने गहरे घने जंगल में नहीं जाता । एक बार फिर दिल डर से जोरों से धड़कने लगा और गला सूख सा गया।  तुरंत रफ़्तार बढ़ाई और उन घने पेड़ों को पार किया। थोड़ा खुले में आकर सबसे पहले पानी से गला तर किया और सामने दिख रही केदार, पंचाचूली, और चौखंबा के एक बार फिर से दर्शन किये और जल्दी जल्दी में ही दो चार फोटो चलते चलते ही लिए।  शाम के समय बर्फ से लदे पहाड़ बहुत गजब दिख रहे थे।  डर और जल्दी ना होती तो थोड़ा और रुकते।  करीब पांच बजे नीचे दुकान से समान बाइक पे लाद फिर चल पड़े।  बिस्कुट के पैकेट वैसे ही लौट आया साथ में कहीं जरुरत ही ना पड़ी खाने की या ये कहें की जान पे बन आयी थी दो बार तो याद ही नहीं आया बिस्कुट खाना हा हा हा।  अब हमें श्रीनगर पहुंचना था।

मंजिल अभी दूर थी रास्ता पहाड़ का वो भी गहराती शाम और आगे रात का।  पहाड़ों की रात भी गहरी काली होती है बिना लाइट तो बराबर में खड़ा आदमी भी न दिखे इतना काला अंधेरा।  पहाड़ी लोगों और ड्राइवरों को अपने पहाड़ के रास्ते का एक एक  मोड़ अच्छे से याद होता है और एक्सपर्ट ड्राइवर होते हैं अपने पूरे पहाड़ी इलाके के लेकिन रात को बहुत लोग शराब पी के भी गाड़ी तेज चलाते हैं और पहाड़ी सड़कें खास तौर से मोटरसाइकिल और स्कूटी जैसे दोपहिया वाहनों के लिए असुरक्षित हो जाती हैं कुछ ऐसे लोगों के कारण और कुछ इलाकों में जंगली जानवरों के कारण। हम भी बदल बदल कर बाइक चला रहे थे और अंधेरा काफी हो चुका था।  रुद्रप्रयाग कब का पीछे छोड़ आये थे।  मोड़ घोड़ वाली सड़क खत्म कर साफ़ सीधी चौड़ी सड़क राजीव जी ने मुझे बाइक चलाने दी। अब बाइक मैं चला रहा था।  चुंकि मैं थोड़ा बाइक धीरे ही चलाता हूं और अब तो रात भी हो गयी थी और रास्ता भी पहाड़ का था तो मैं बाइक 20-25 से आगे नहीं चला पा रहा था।  श्रीनगर अब नज़दीक ही था लेकिन साढ़े आठ बज चुके थे और मेरी रफ़्तार से नौ सवा नौ तो बज ही जाते फिर कहीं धर्मशाला बंद ना हो जाए और फिर रूम के लिए रात को इधर उधर भटकना ना पड़े साथ ही साथ अभी खाना भी खाना था उसके लिए भी तो समय चाहिए तो राजीव जी ने बाइक संभाल ली और मैंने पीछे वाली सीट। उन्होंने ये बाइक भगायी ब्रुम-ब्रुम और 20 मिनट में हम श्रीनगर। बाइक सीधा बाबा काली कमली वाले धर्मशाला के अंदर ही जाकर रोकी। रूम पूछने पर केयरटेकर ने हमें वही परसों वाला रूम का ही इशारा कर दिया।  रूम लॉक नहीं था।  बैग रख तुरंत खाना खाने बाहर आये और फिर से पास ही की गली के भंडारी के होटल में 50 रुपए डाइट में खाना खाया।  मक्खन और दही एक्स्ट्रा ले लिया।  खाना खा सीधा चले रूम की और मुंह हाथ पैर धो धम्म से बिस्तर पर गिरे।  सुबह 5 बजे का अलार्म राजीव जी के फ़ोन में हमेशा सेट ही रहता है तो मुझे अलार्म की जरुरत ही नहीं थी।  मेरा अलार्म राजीव जी ही रहे इन चार दिन। मोबाइल थोड़ा सा चार्ज किया और सो गए।

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, दुकान का फ़ोन नंबर है इस फोटो में
     
Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, राजीव जी

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Kartik Swami Temple, घास फूस की फोटो

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, कनकचोरी गांव ऊपर से ऐसा दिखता है। 

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Kartik Swami Temple, और ये हम गलत पगडण्डी पे

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Kartik Swami Temple, इसी लड़के ने हमारी सहायता की थी।  देव बिष्ट नाम था शायद इसका। 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, आ पहुंचे कार्तिक स्वामी मंदिर

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, मंदिर समिति और आश्रम भवन

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, सरकारी बोर्ड कार्तिक स्वामी मंदिर का

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, नज़ारा पहाड़ों का 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, एक और रेस्ट हाउस

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, दूर तक फैला हिमालय 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, एक नज़ारा ये भी 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, बादल ना होते तो ये फोटो भी साफ़ आता

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, हरियाले पहाड़ 

Kartik Swami Temple
Kartik Swami Temple, एक और फोटो 


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