खिर्सू उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले का एक बहुत ही सुंदर पर्यटक स्थल है। पर्यटकों की भीड़ भाड़ से परे एक शांत रमणीक जगह। खिर्सू को गढ़वाल का छुपा हीरा भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। खिर्सू पौड़ी से 11 किलोमीटर और देहरादून से 92 किलोमीटर की दूरी पर है। खिर्सू एक गांव है जो उत्तराखंड राज्य के गठन के समय एक पर्यटक स्थल के रूप में उभरा और उसे पर्यटक स्थल का दर्जा दिया गया। खिर्सू की समुद्रतल से ऊंचाई सिर्फ 1900 मीटर है लेकिन घने
देवदार और
बांज के पेड़ होने से गर्मियों में भी ठंडा रहता है और सर्दियों में हल्की बर्फ़बारी से पर्यटकों का स्वागत करता है जो इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देती है। यहां सेब के बगीचे भी हैं जहां आप सेब पकने के मौसम में उनका आनंद ले सकते हैं। खिर्सू से हिमालय की कई जानी पहचानी बर्फ से लदी चोटियां दिखाई देती हैं जो हमेशा से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहीं हैं।
आज भी राजीव जी
अलार्म बजने के साथ ही उठ गए। अलार्म सुन कर मेरी भी नींद खुल गयी थी पर थोड़ी देर और बिस्तर में ही घुसा रहा। सुबह की नींद भला किसे अच्छी नहीं लगती। 5:30 बजे राजीव जी के आवाज देने पर ही उठा। राजीव जी नहा धो कर रेडी हो चुके थे और मोबाइल के नोटिफिकेशन चैक करने लगे। मैं जल्दी से फ्रेश हो नहा आया। आज हमें वापस दिल्ली लौटना था और खिर्सू भी देखना था जो हमारे रास्ते में ही था। सुबह के 6 बजे हम रूम खाली कर बाइक पे सवार हो चुके थे। रूम का किराया रात को ही दे दिया था। श्रीनगर 560 मीटर की ऊंचाई पर है और खिर्सू है 1900 मीटर पर तो हमें आज खिर्सू तक चढ़ाई ही मिलने वाली थी। सुबह सुबह सड़क पर सैर करते करते आदमी-औरत जवान और बूढ़े काफी लोग मिले। सभी को सुबह की सैर करनी चाहिए। बहुत अच्छी
आदत है। सुबह का समय था तो सड़क पर ट्रैफिक भी नहीं था और पंछी सड़क पर ही कूदा फांदी कर रहे थे। बहुत सारी रंगबिरंगी चिड़ियां , उत्तराखंड का राज्यपक्षी मोनाल भी दिखा लेकिन हमारे फ़ोन निकालने से पहले ही सब उड़ कर पेड़ों में छिप जाते और हम किसी की भी अच्छी साफ़ फोटो नहीं ले पाए। वैसे भी सब पंछी बहुत शर्मीले होते हैं किसी के पास नहीं आते। झट से फुर्र हो जाते हैं। एक लोमड़ी भी सड़क पार करती दिखी। एक छोटे से
कस्तूरी हिरण भी दिखा। बहुत ही सुंदर बिना सींग वाला। वो भी हमें देख एक ही छलांग में पेड़ों में छिप गया। राजीव जी ने बाइक पीछे ही रोक दी थी और मैं धीरे धीरे चल कर उसे देखने और फोटो लेने आगे गया जहां वो ऊपर की तरफ पेड़ों में छुपा था। वो भी वहीं खड़ा हमारे जाने का ही इंतजार कर रहा था। जैसे ही उसने मुझे देखा झट से एक और छलांग और और घने पेड़ों में खो गया। मैं लौट आया खाली हाथ बिना फोटो के। हां दो बार देख लिया उसे उसके प्रकृतिक वातावरण में एकदम आजाद। बहुत बहुत सुंदर जीव है। सड़क में अभी भी चढ़ाई चल ही रही थी और बाइक भी अपना जोर लगाकर हमें लिए चले जा रही थी। साढ़े आठ खिर्सू पहुंच गए।
बहुत सुंदर शांत छोटा सा गांव। यहीं सबसे पहले वाले चाय परांठे की दुकान पर ही बाइक रोक दी। अभी थोड़ी देर पहले ही दुकान खुली थी। आलू उबाल कर बनाया पराठों का मसाला बन कर रेडी था। हमने भी देर ना करते हुए दो परांठे और चाय का आर्डर दे दिया। पति पत्नी दोनों मिल कर काम संभाल रहे थे। अपने काम में बहुत तेज। सब कुछ मिनटों में ही रेडी कर दिया। परांठे कम तेल घी के और करारे बनाने का कह दिया। परांठे अच्छे बने थे। एक एक परांठा खाने के बाद एक हाफ हाफ और खाया। चाय भी सही बनी थी। नाश्ता कर हम बाइक वही छोड़ हम चले
GMVN के रेस्ट हाउस की तरफ।
यह खिर्सू की सबसे बेस्ट लोकेशन पे बना है। सामने दिखता हिमालय आपके सब दुःख दर्द भुला देता है। आम तौर पर GMVN के सभी गेस्ट हाउस सबसे प्राइम लोकेशन पर ही होते हैं इसने भी यही साबित कर दिया। एकदम शांत बिना भीड़भाड़। गेस्ट हाउस के एंट्री गेट के अंदर ही रेस्टोरेंट कुछ लोग नाश्ता कर रहे थे। गेस्ट हाउस के आगे बहुत ही सुंदर फूलों का बाग लगा है। रंगबिरंगे फूल खिले थे पीले, सफ़ेद, लाल, गुलाबी, संतरी रंग और भी बहुत सारे। तीन चार रंग के तो गेंदे के ही फूल थे जिन्हें मैं पहचान पाया बाकी आप देखना आप पहचान लेते हो सब को या नहीं। खूब फोटो लिए। पूरी ट्रिप में ये जगह सब से ज्यादा रंगीन थी। हरी हरी घास का मैदान और उसमें लगे फूल किसी का भी मन मोह लें। किनारे किनारे ऊंचे रंगीन झंडे लहरा रहे थे। पूरा लक्ज़री लुक विद सामने हराभरा और बर्फीला हिमालय। आधा घंटे में जितना आँखों और दिल में समेट सकते थे समेट लिया। बचा खुचा मोबाइल ने समेट लिया। बढ़िया कैमरे का मोबाइल ऐसी जगह पर ही फोटो खींच के पैसे वसूल कराता है। घर लौटने का समय हो गया था और सफर अब काफी लंबा और थकाऊ होने वाला था। सतपुली पार हुआ और शुरू हुई शहरों की भीड़। कोटद्वार तक नॉनस्टॉप ही चलते रहे।
नजीबाबाद आते आते जोरों की भूख लग गयी थी। अब एक अच्छे अच्छे ढाबे की तलाश थी जहां अच्छा खाना मिल जाये पर कोई भी अच्छा खाने का ढाबा नहीं आ रहा था। कुछ आये वो हमें कुछ अच्छे नहीं लगे तो आगे बढ़ते गए। देखते देखते बिजनौर बायपास भी आ गया लेकिन अभी भी तलाश जारी थी। मेरा भूख से हाल बुरा था। सुबह के परांठे तो कब के बाइक के सफर ने पचा दिए पता ही नहीं चला। राजीव जी को कहा राजीव जी इतने दिन भी पानी जैसी दाल और मैदे की रोटियां ही खायी हैं उनसे तो कुछ अच्छा करारा ही मिलेगा रोक लो कहीं जैसा होगा खा लेंगे अब और सहा नहीं जाता। वैसे भी मैं पीछे बैठा वेहला ही था तो बार बार भूख पे ही ध्यान जा रहा था और दोपहर के दो भी बज गए थे। राजीव जी ने दिलासा दिया अब जो भी होटल ढाबा आएगा वहीं रुक जायेंगे। कुछ दूर और आगे चले तो एक ढाबा आया। कोई ग्राहक नहीं बिलकुल खाली जैसे हमारा ही इंतजार कर रहा था। वहीं बाइक रोक दी। ढाबे की सबसे अच्छी बात ये होती कि वहां खाट बिछी होती हैं खूब सारी और हम जैसे थके हुए राहगीरों को वो खाट फाइव स्टार होटल के डनलप के गद्दों का सा आराम देती है। बाइक रोक तुरंत एक एक खाट पे लेट गए और कमर सीधी की। परम आनंद । परम आनंद । ढाबे वाले को पूछा खाने में क्या है तो उसने कई सब्जिओं के नाम गिनाये। राजमा दाल, फूल गोभी की सब्जी और दही रोटी का आर्डर लेटे लेटे ही दिया। करीब बीस मिनट में खाना लग गया। सड़क के किनारे ही होने के कारण गाड़ियों से थोड़ी धूल उड़ रही थी जिसने खाने का मजा बिगाड़ा पर फिर भी मुझे खाना काफी अच्छा लगा। बिल आया 180 रुपए। खाना खा और पंद्रह मिनट आराम किया और फिर चले वहां से दिल्ली की तरफ क्योंकि अब नॉनस्टॉप ही दिल्ली तक बाइक चलानी थी और लेट भी काफी हो रहे थे और आगे ट्रैफिक भी और बढ़ना था। खतौली आते आते ही फिर से थकान ने घेर लिया लेकिन चलते रहे। खतौली से नहर रोड़ पकड़ ली। बाइक चलाये जा रहे थे लेकिन थकावट से रास्ता बहुत लंबा लग रहा था। मोटरसाइकिल पर बैठे बैठे पिछवाड़े का भी बुरा हाल हो गया था। हर पांच मिनट में थोड़ा ऊपर उठ कर उसे आराम देने की कोशिश हो रही थी। बड़ी ही मुश्किल से दिल्ली पहुंचे। रात के आठ बज गए थे। थक कर एकदम चूर हो चुके थे। राजीव जी ने मुझे दिलशाद गार्डन मेट्रो स्टेशन पे उतार दिया जहां से मुझे शास्त्री नगर मेट्रो और वहां से सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन जाकर गाडी बीकानेर की ट्रेन पकड़नी थी और राजीव जी का घर तो वहीं थोड़ी दूर ही था। एक बड़ा सा धन्यवाद देकर राजीव जी से विदा ली। इस सफर का पहला और आखरी दिन थोड़ा भागादौड़ी का रहा बाकी तीन दिन बहुत आराम और मजे से कटे। चलते चलते राजीव जी ने अपनी पानी की बोतल मुझे दी और कहा के ले जाओ अभी रास्ते में काम आएगी।
राजीव जी एक अच्छे और सुलझे हुए आदमी हैं। मित्रमंडली में अपने मस्तमौला मजाकिया अंदाज के लिए मशहूर हैं। दोस्तों की टांग खिंचाई करने में तो इन्हें महारत हासिल है। इनकी घुमक्क्ड़ी के बारे में कहें तो इन्होंने लगभग पूरे भारत को
SUV से नाप रखा है। शायद ही कोई ऐसा जिला या शहर हो जहां ये ना गए हों। पूरे दो दशकों से घुमक्क्ड़ी जारी है। अब पहाड़ों की ट्रैकिंग में ज्यादा रूचि लेते हैं। पचास पार हैं लेकिन फिट और जिंदादिल। ट्रैकिंग पे भी ये हमेशा मुझ से तेज और आगे ही चले । इन पांच दिनों में इनके साथ की घुमक्क्ड़ी में मैंने काफ़ी छोटे बड़े जिंदगी और घुमक्क्ड़ी के सबक सीखे जो भविष्य में मेरे काम आएंगे।
शास्त्री नगर मेट्रो उतर कर पैदल ही दस मिनट में सराय रोहिल्ला पहुंच गया। ट्रेन 11:30 की थी और अभी 9 बजे थे। राजीव जी की बोतल में पांच रुपये में पानी फिल करवाया और वहीं स्टेशन की सब्जी पूड़ी खायी। साथ ही साथ सफर से बचा हुआ बीकानेरी भुजिया भी साफ़ कर दिया। बैठ गया आराम से पसर कर स्टेशन की बेंच पर। एक फौजी भाई आया साथ वाली सीट पर सादी वर्दी। काफी देर उससे गप्पें मारी। जम्मू में पोस्टेड था और गांव से जम्मू लौट रहा था । किसी ऑफिस के काम से आया था दिल्ली और कागज ऑफिस जमा करवा कर दो दिन घर जा आया था क्योंकि बीच में संडे की छुट्टी आ गयी थी। उसकी ट्रेन पहले थी और उसने समय से अपनी गाडी पकड़ ली। मेरी ट्रेन का भी समय हो चला था और दस मिनट बाद मेरी ट्रेन भी प्लेटफार्म पे लग गयी। अपने नंबर की सीट खोज के आराम से लेट गया । जब तक गाडी नहीं चली तब तक मोबाइल चलाया और गाड़ी चलते ही लम्बी तान के सो गया। सुबह 7:30 बजे
बीकानेर आकर ही नींद खुली। वहां आदित्य मुझे लेने स्टेशन पे आ गया था और उसके साथ अपने घर पहुंच गया। पांच दिन चार रात का खाना, रुकना और पेट्रोल का सब मिलाकर आधा मेरे हिस्से में 2700 रूपये खर्चा आया। श्री मध्यमहेश्वर की ये मेरी पहली घुमक्क्ड़ी काफी किफायती रही और यादगार भी।
मेरा यात्रा वृतांत पढने के लिए आपका धन्यवाद
फिर मिलूंगा एक नई जगह की घुमक्क्ड़ी के नए किस्सों के साथ